मधुराविजयम् /713
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संग्रामदेवतापाङ्ग
संग्रामवन्यामभित
सतताध्वरधूम
स तत्र तत्र संभूतैः
स तत्र दिवसान् कांश्चित्
स तस्याममरावत्यां
सत्स्वप्यन्येषु दारेषु
स तीर्थलब्धायुध
स दुग्धवाहिनीवीचि
संध्यासु यत्र निर्यान्ति
स नयन् महतीं सेनां
स नव्यतारुण्यनिरस्त
सपक्ष इव तार्क्ष्यस्य
सपञ्चबाणद्विपकेलि
समग्रतारुण्यमदस्य
समीरणरयोदग्र
समोऽपि पुरुषार्थेषु
सरस चन्दनधारिषु
सरसिजाकरसंचर
स राजसूनुस्सह.
स रूपगर्वेण निरास्थदङ् घ्रिणा
सलिलकेलिकुतूहल
सलिलहभिया
संवर्तमारुताक्षिप्त
स वञ्चयंस्तत्तरवारि
स सत्यवारिवलो
18
9
8
4
1
1
3
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सतताध्वरधूम
स तत्र तत्र संभूतैः
स तत्र दिवसान् कांश्चित्
स तस्याममरावत्यां
सत्स्वप्यन्येषु दारेषु
स तीर्थलब्धायुध
स दुग्धवाहिनीवीचि
संध्यासु यत्र निर्यान्ति
स नयन् महतीं सेनां
स नव्यतारुण्यनिरस्त
सपक्ष इव तार्क्ष्यस्य
सपञ्चबाणद्विपकेलि
समग्रतारुण्यमदस्य
समीरणरयोदग्र
समोऽपि पुरुषार्थेषु
सरस चन्दनधारिषु
सरसिजाकरसंचर
स राजसूनुस्सह.
स रूपगर्वेण निरास्थदङ् घ्रिणा
सलिलकेलिकुतूहल
सलिलहभिया
संवर्तमारुताक्षिप्त
स वञ्चयंस्तत्तरवारि
स सत्यवारिवलो
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