मधुराविजयम् /710
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यत्र स्त्रीणां कटाक्षेषु
यत्सौधचन्द्रशालासु
यत्रावलग्नसादृश्य
यदङ्गनामुखाम्भोज
यदीयो दक्षिणः पाणि:
यद्दीर्घिकासु माणिक्य
यद्विभूतिस्तुतौ
यशस्तोमैरिवाशेष
यश्शेष इव नागनां
यस्य कीर्त्या प्रसर्पन्त्या
यस्य सेनातुरङ्गाणां
यस्याङ्घ्रिपीठ
यस्यां प्रासाद
यावत्कृपाणेन
युवानमज्ञात
रंहस्स्विन
रजस्तमसि वीरास्त्र
रजोभिर्मुहुरुद्भूतैः
रमणीयतरो
रविरथ्यखुरोत्थित
रुधिरबिन्दुनिभ
लक्ष्मीलतालवालेन
लक्ष्मीश्चिराजगद्द्रक्षा
लवणोदन्वदेकान्त
लीलेव दिष्टिवृद्धीना
15
अ
1
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यत्रावलग्नसादृश्य
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यदीयो दक्षिणः पाणि:
यद्दीर्घिकासु माणिक्य
यद्विभूतिस्तुतौ
यशस्तोमैरिवाशेष
यश्शेष इव नागनां
यस्य कीर्त्या प्रसर्पन्त्या
यस्य सेनातुरङ्गाणां
यस्याङ्घ्रिपीठ
यस्यां प्रासाद
यावत्कृपाणेन
युवानमज्ञात
रंहस्स्विन
रजस्तमसि वीरास्त्र
रजोभिर्मुहुरुद्भूतैः
रमणीयतरो
रविरथ्यखुरोत्थित
रुधिरबिन्दुनिभ
लक्ष्मीलतालवालेन
लक्ष्मीश्चिराजगद्द्रक्षा
लवणोदन्वदेकान्त
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