मधुराविजयम् /707
This page has not been fully proofread.
  
  
  
  परिपन्थिकबन्ध
  
  
  
   
  
  
  
परिपन्थिनृपप्राण
परिपिण्डितयावकारुण
   
  
  
  
परिमुषितपटीर
परिरभ्य दृढ़
परिलसन्नवलोध्र
   
  
  
  
परिवहदनुराग
   
  
  
  
परिसरद्वयचामर
   
  
  
  
परुषतापविशेष
   
  
  
  
परुषेऽपि तथा
   
  
  
  
पशुपतिरिव नेत्रै:
   
  
  
  
पांसुस्थगनलक्ष्येण
   
  
  
  
पादातप्राप्त
   
  
  
  
पुलककञ्चु कितैः
   
  
  
  
पृथ्वीरथस्सारथि
   
  
  
  
पोषितो हग्रहेषाभि
   
  
  
  
प्रकीर्णकाश्मीरपराग
   
  
  
  
प्रचुरधर्मपयः
प्रणयागतचोल
   
  
  
  
प्रणयिनि सलिलाप
   
  
  
  
प्रतापादित्य
   
  
  
  
प्रतिबिम्बपरम्परा
   
  
  
  
प्रतिविम्वितदीप कान्ति
   
  
  
  
प्रथमाचलमौलि
   
  
  
  
प्रथमां हरितं
   
  
  
  
प्रथितशक्तिरवाप्त
   
  
  
  
12
   
  
  
  
7
   
  
  
  
5
   
  
  
  
8
   
  
  
  
1
   
  
  
  
7
   
  
  
  
Co
   
  
  
  
LG
   
  
  
  
6
   
  
  
  
5
   
  
  
  
5
   
  
  
  
7
   
  
  
  
2
   
  
  
  
4
   
  
  
  
4
   
  
  
  
5
   
  
  
  
2
   
  
  
  
4
   
  
  
  
2
   
  
  
  
10
   
  
  
  
8
   
  
  
  
6
   
  
  
  
7
   
  
  
  
4
   
  
  
  
8
   
  
  
  
5
   
  
  
  
7
   
  
  
  
34
   
  
  
  
34
   
  
  
  
37
   
  
  
  
63
   
  
  
  
43
   
  
  
  
58
   
  
  
  
3
   
  
  
  
10
   
  
  
  
18
   
  
  
  
38
   
  
  
  
42
   
  
  
  
39
   
  
  
  
53
   
  
  
  
53
   
  
  
  
8
   
  
  
  
16
   
  
  
  
26
   
  
  
  
21
   
  
  
  
22
   
  
  
  
58
   
  
  
  
37
   
  
  
  
8
   
  
  
  
20
   
  
  
  
44
   
  
  
  
6
   
  
  
  
3
   
  
  
  
501
   
  
  
  
39
   
  
  
  
445
   
  
  
  
395
   
  
  
  
453
   
  
  
  
317
   
  
  
  
373
   
  
  
  
200
   
  
  
  
301
   
  
  
  
446
   
  
  
  
136
   
  
  
  
237
   
  
  
  
219
   
  
  
  
342
   
  
  
  
90
   
  
  
  
218
   
  
  
  
117
   
  
  
  
305
   
  
  
  
489
   
  
  
  
389
   
  
  
  
236
   
  
  
  
413
   
  
  
  
487
   
  
  
  
154
   
  
  
  
410
   
  
  
  
281
   
  
  
  
  
परिपन्थिनृपप्राण
परिपिण्डितयावकारुण
परिमुषितपटीर
परिरभ्य दृढ़
परिलसन्नवलोध्र
परिवहदनुराग
परिसरद्वयचामर
परुषतापविशेष
परुषेऽपि तथा
पशुपतिरिव नेत्रै:
पांसुस्थगनलक्ष्येण
पादातप्राप्त
पुलककञ्चु कितैः
पृथ्वीरथस्सारथि
पोषितो हग्रहेषाभि
प्रकीर्णकाश्मीरपराग
प्रचुरधर्मपयः
प्रणयागतचोल
प्रणयिनि सलिलाप
प्रतापादित्य
प्रतिबिम्बपरम्परा
प्रतिविम्वितदीप कान्ति
प्रथमाचलमौलि
प्रथमां हरितं
प्रथितशक्तिरवाप्त
12
7
5
8
1
7
Co
LG
6
5
5
7
2
4
4
5
2
4
2
10
8
6
7
4
8
5
7
34
34
37
63
43
58
3
10
18
38
42
39
53
53
8
16
26
21
22
58
37
8
20
44
6
3
501
39
445
395
453
317
373
200
301
446
136
237
219
342
90
218
117
305
489
389
236
413
487
154
410
281