मधुराविजयम् /706
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3)
न प्रार्थनीयस्तत्काव्य
नयनानि जनस्य
नरनाथ पुरा
नरपतेः प्रतिहार
नरेन्द्रसूनुर्नयनाभि
नलिनमुखि न बोधय
नवपल्लवकोमल
नववधूपरिरम्भण
नियतमम्बुद
नियतिनिर्मित
निरायता तस्य
निर्जगाम निजागारा
निर्दोषाप्यगुणा वाणी
निशाचरा: केचन
नृपमौलिमणि
पटुतटिद्गण
पटु पुरः पवना
पतयालुपतङ्ग
पथिक सार्थ
पद्मरागोपलोत्कीर्ण
परलोकपथं प्रपेदुष:
पराक्रमाधः कृत
परिचूषितदीप्ति
परिणतेक्षुपरिच्युत
परित स्तततन्तुवाय
11
प )
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नयनानि जनस्य
नरनाथ पुरा
नरपतेः प्रतिहार
नरेन्द्रसूनुर्नयनाभि
नलिनमुखि न बोधय
नवपल्लवकोमल
नववधूपरिरम्भण
नियतमम्बुद
नियतिनिर्मित
निरायता तस्य
निर्जगाम निजागारा
निर्दोषाप्यगुणा वाणी
निशाचरा: केचन
नृपमौलिमणि
पटुतटिद्गण
पटु पुरः पवना
पतयालुपतङ्ग
पथिक सार्थ
पद्मरागोपलोत्कीर्ण
परलोकपथं प्रपेदुष:
पराक्रमाधः कृत
परिचूषितदीप्ति
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