मधुराविजयम् /706
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न प्रार्थनीयस्तत्काव्य
   
  
  
  
नयनानि जनस्य
   
  
  
  
नरनाथ पुरा
   
  
  
  
नरपतेः प्रतिहार
   
  
  
  
नरेन्द्रसूनुर्नयनाभि
नलिनमुखि न बोधय
   
  
  
  
नवपल्लवकोमल
   
  
  
  
नववधूपरिरम्भण
   
  
  
  
नियतमम्बुद
नियतिनिर्मित
   
  
  
  
निरायता तस्य
   
  
  
  
निर्जगाम निजागारा
   
  
  
  
निर्दोषाप्यगुणा वाणी
   
  
  
  
निशाचरा: केचन
   
  
  
  
नृपमौलिमणि
   
  
  
  
पटुतटिद्गण
पटु पुरः पवना
   
  
  
  
पतयालुपतङ्ग
   
  
  
  
पथिक सार्थ
   
  
  
  
पद्मरागोपलोत्कीर्ण
   
  
  
  
परलोकपथं प्रपेदुष:
   
  
  
  
पराक्रमाधः कृत
   
  
  
  
परिचूषितदीप्ति
परिणतेक्षुपरिच्युत
   
  
  
  
परित स्तततन्तुवाय
   
  
  
  
11
   
  
  
  
प )
   
  
  
  
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न प्रार्थनीयस्तत्काव्य
नयनानि जनस्य
नरनाथ पुरा
नरपतेः प्रतिहार
नरेन्द्रसूनुर्नयनाभि
नलिनमुखि न बोधय
नवपल्लवकोमल
नववधूपरिरम्भण
नियतमम्बुद
नियतिनिर्मित
निरायता तस्य
निर्जगाम निजागारा
निर्दोषाप्यगुणा वाणी
निशाचरा: केचन
नृपमौलिमणि
पटुतटिद्गण
पटु पुरः पवना
पतयालुपतङ्ग
पथिक सार्थ
पद्मरागोपलोत्कीर्ण
परलोकपथं प्रपेदुष:
पराक्रमाधः कृत
परिचूषितदीप्ति
परिणतेक्षुपरिच्युत
परित स्तततन्तुवाय
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