मधुराविजयम् /703
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  चिरं स विजयी
  
  
  
   
  
  
  
चिराय कौचित्
   
  
  
  
चेतसोऽस्तु प्रसादाय
   
  
  
  
चौर्याजितेन काव्येन
   
  
  
  
च्युतेऽपि शीर्ष
   
  
  
  
छायामेवात्मनः
   
  
  
  
जननीमुपलभ्य
जवाधरितजम्भारि
   
  
  
  
जिघत्सयान्तःपतगैः
   
  
  
  
जिष्णुना भुवनेशेन
   
  
  
  
ज्ञात्वा वशे तस्य
   
  
  
  
तं तुङ्गभद्राकल्लोल
   
  
  
  
ततः कम्पनरेन्द्रस्य
   
  
  
  
ततः परं ताप
   
  
  
  
ततः प्रतीतेऽह्नि
   
  
  
  
तत इतो विहरत्तटिदङ्गना
   
  
  
  
तततन्त्वनुघूर्ण
   
  
  
  
ततो धृतसमायोगा
   
  
  
  
ततो महार्है
   
  
  
  
ततो यथावत्
   
  
  
  
ततस्तुलुष्कान्
ततस्सेनागजेन्द्राणां
   
  
  
  
ततस्सैरन्ध्रीभिः
   
  
  
  
8
   
  
  
  
( छ )
   
  
  
  
( ज )
   
  
  
  
( त )
   
  
  
  
1
   
  
  
  
9
   
  
  
  
1
   
  
  
  
9
   
  
  
  
7
   
  
  
  
4
   
  
  
  
9
   
  
  
  
1
   
  
  
  
2
   
  
  
  
4
   
  
  
  
2
   
  
  
  
2
   
  
  
  
5
   
  
  
  
8
   
  
  
  
4
   
  
  
  
3
   
  
  
  
3
   
  
  
  
9
   
  
  
  
4
   
  
  
  
6
   
  
  
  
16
   
  
  
  
13
   
  
  
  
5
   
  
  
  
21
   
  
  
  
39
   
  
  
  
66
   
  
  
  
32
   
  
  
  
23
   
  
  
  
7
   
  
  
  
30
   
  
  
  
16
   
  
  
  
46
   
  
  
  
62
   
  
  
  
13
   
  
  
  
33
   
  
  
  
25
   
  
  
  
3
   
  
  
  
17
   
  
  
  
45
   
  
  
  
1
   
  
  
  
23
   
  
  
  
43
   
  
  
  
69
   
  
  
  
20
   
  
  
  
520
   
  
  
  
8
   
  
  
  
27
   
  
  
  
549
   
  
  
  
260
   
  
  
  
439
   
  
  
  
224
   
  
  
  
514
   
  
  
  
35
   
  
  
  
103
   
  
  
  
214
   
  
  
  
257
   
  
  
  
98
   
  
  
  
126
   
  
  
  
309
   
  
  
  
469
   
  
  
  
219
   
  
  
  
197
   
  
  
  
140
   
  
  
  
530
   
  
  
  
241
   
  
  
  
40
   
  
  
  
  
चिराय कौचित्
चेतसोऽस्तु प्रसादाय
चौर्याजितेन काव्येन
च्युतेऽपि शीर्ष
छायामेवात्मनः
जननीमुपलभ्य
जवाधरितजम्भारि
जिघत्सयान्तःपतगैः
जिष्णुना भुवनेशेन
ज्ञात्वा वशे तस्य
तं तुङ्गभद्राकल्लोल
ततः कम्पनरेन्द्रस्य
ततः परं ताप
ततः प्रतीतेऽह्नि
तत इतो विहरत्तटिदङ्गना
तततन्त्वनुघूर्ण
ततो धृतसमायोगा
ततो महार्है
ततो यथावत्
ततस्तुलुष्कान्
ततस्सेनागजेन्द्राणां
ततस्सैरन्ध्रीभिः
8
( छ )
( ज )
( त )
1
9
1
9
7
4
9
1
2
4
2
2
5
8
4
3
3
9
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16
13
5
21
39
66
32
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7
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20
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27
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260
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257
98
126
309
469
219
197
140
530
241
40