मधुराविजयम् /701
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  करेग कंचित्पदयोः
  
  
  
   
  
  
  
करोति कीर्तिमर्थाय
   
  
  
  
कर्णाटलोकनयनोत्सव
   
  
  
  
कलक्वणकाञ्चन
   
  
  
  
कलयामि कलङ्क
   
  
  
  
कलशजस्य मुने
   
  
  
  
कलिकालमहाधर्म
   
  
  
  
कल्पद्रुमास्तेन
   
  
  
  
कल्पान्तोद्भ्रान्त
   
  
  
  
कल्याणाय सतां
   
  
  
  
कस्तूरीहरिणाकान्न
   
  
  
  
काले कलावण्यसुरान्तकस्य
क़िमिति मृदुपदं
किमु धूमभरः प्रशाम्यतो
· कुन्तेन कश्चिद्द्विषता
कुम्भेषु भिन्दन्नपतिः
कुलक्रमानुसंप्राप्त
   
  
  
  
कृत्ताश्शशाङ्कार्ध
   
  
  
  
कृपाणकर्षणप्रास
   
  
  
  
कृपाणकृत्तान्
   
  
  
  
क्रमागताः कर्मकृतो
   
  
  
  
क्रमाज्जहद्भिः ऋशिमान
   
  
  
  
क्रमेण धात्रीजन
   
  
  
  
क्रोधेन योधाः
   
  
  
  
क्वचिदर्थः क्वचिच्छब्दः
   
  
  
  
क्षतजार्द्राः
   
  
  
  
क्षतानि यान्यस्य
   
  
  
  
क्षयकालकराल
   
  
  
  
क्षितिपति किल
   
  
  
  
6
   
  
  
  
9
   
  
  
  
1
   
  
  
  
1
   
  
  
  
2
   
  
  
  
7
   
  
  
  
5
   
  
  
  
1
   
  
  
  
2
   
  
  
  
1
   
  
  
  
1
   
  
  
  
2
   
  
  
  
6
   
  
  
  
7
   
  
  
  
9
   
  
  
  
9
   
  
  
  
1
   
  
  
  
9
   
  
  
  
4
   
  
  
  
4
   
  
  
  
3
   
  
  
  
2
   
  
  
  
2
   
  
  
  
9
   
  
  
  
1
   
  
  
  
4
   
  
  
  
9
   
  
  
  
8
   
  
  
  
5
   
  
  
  
9
   
  
  
  
23
   
  
  
  
75
   
  
  
  
39
   
  
  
  
52
   
  
  
  
41
   
  
  
  
37
   
  
  
  
18
   
  
  
  
4
   
  
  
  
1
   
  
  
  
48
   
  
  
  
29
   
  
  
  
11
   
  
  
  
24
   
  
  
  
12
   
  
  
  
17
   
  
  
  
72
   
  
  
  
3
   
  
  
  
9
   
  
  
  
59
   
  
  
  
38
   
  
  
  
9
   
  
  
  
36
   
  
  
  
1
   
  
  
  
17
   
  
  
  
57
   
  
  
  
31
   
  
  
  
19
   
  
  
  
75
   
  
  
  
516
   
  
  
  
29
   
  
  
  
76
   
  
  
  
133
   
  
  
  
462
   
  
  
  
328
   
  
  
  
41
   
  
  
  
106
   
  
  
  
206
   
  
  
  
2
   
  
  
  
51
   
  
  
  
120
   
  
  
  
383
   
  
  
  
430
   
  
  
  
519
   
  
  
  
524
   
  
  
  
74
   
  
  
  
510
   
  
  
  
211
   
  
  
  
254
   
  
  
  
189
   
  
  
  
93
   
  
  
  
129
   
  
  
  
508
   
  
  
  
22
   
  
  
  
253
   
  
  
  
539
   
  
  
  
486
   
  
  
  
367
   
  
  
  
  
करोति कीर्तिमर्थाय
कर्णाटलोकनयनोत्सव
कलक्वणकाञ्चन
कलयामि कलङ्क
कलशजस्य मुने
कलिकालमहाधर्म
कल्पद्रुमास्तेन
कल्पान्तोद्भ्रान्त
कल्याणाय सतां
कस्तूरीहरिणाकान्न
काले कलावण्यसुरान्तकस्य
क़िमिति मृदुपदं
किमु धूमभरः प्रशाम्यतो
· कुन्तेन कश्चिद्द्विषता
कुम्भेषु भिन्दन्नपतिः
कुलक्रमानुसंप्राप्त
कृत्ताश्शशाङ्कार्ध
कृपाणकर्षणप्रास
कृपाणकृत्तान्
क्रमागताः कर्मकृतो
क्रमाज्जहद्भिः ऋशिमान
क्रमेण धात्रीजन
क्रोधेन योधाः
क्वचिदर्थः क्वचिच्छब्दः
क्षतजार्द्राः
क्षतानि यान्यस्य
क्षयकालकराल
क्षितिपति किल
6
9
1
1
2
7
5
1
2
1
1
2
6
7
9
9
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8
5
9
23
75
39
52
41
37
18
4
1
48
29
11
24
12
17
72
3
9
59
38
9
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1
17
57
31
19
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29
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133
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206
2
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120
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74
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211
254
189
93
129
508
22
253
539
486
367