मधुराविजयम् /699
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  असुहृदां सुहृदामिव
  
  
  
   
  
  
  
अस्योपवाह्यत्वममुष्य
   
  
  
  
अहंपूर्विकया
   
  
  
  
अहरत्यय राग़
   
  
  
  
अहरहनृपतेः
   
  
  
  
आकम्पयिष्यत्ययमेक
   
  
  
  
आकर्णमाकृष्टशरासनौ
   
  
  
  
आगामिनीमध्वर
   
  
  
  
आचारलाजैः पौराणां
   
  
  
  
आचार्य दण्डिनो
   
  
  
  
आबद्धकुथमातङ्ग
   
  
  
  
आलक्ष्यरेखामय
   
  
  
  
आलोकशब्द
   
  
  
  
आविन्ध्यादा च
   
  
  
  
आश्लिष्यतस्तस्य दृशा
   
  
  
  
आसञ्जिता कङ्क
   
  
  
  
आसीत्समस्तसामन्त
   
  
  
  
आस्रापगासु परितो
   
  
  
  
आस्फाल्यमनस्य च
   
  
  
  
इतीरयित्वा विरते
   
  
  
  
इत्थं सङ्गरमूर्ध्नि
   
  
  
  
इति समुचिताभि
   
  
  
  
इति सा दयितेन
   
  
  
  
इति सा निखिलं
   
  
  
  
इति सुखान्युचितानि
   
  
  
  
4
   
  
  
  
( आ )
   
  
  
  
( इ ) )
   
  
  
  
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LO
   
  
  
  
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अस्योपवाह्यत्वममुष्य
अहंपूर्विकया
अहरत्यय राग़
अहरहनृपतेः
आकम्पयिष्यत्ययमेक
आकर्णमाकृष्टशरासनौ
आगामिनीमध्वर
आचारलाजैः पौराणां
आचार्य दण्डिनो
आबद्धकुथमातङ्ग
आलक्ष्यरेखामय
आलोकशब्द
आविन्ध्यादा च
आश्लिष्यतस्तस्य दृशा
आसञ्जिता कङ्क
आसीत्समस्तसामन्त
आस्रापगासु परितो
आस्फाल्यमनस्य च
इतीरयित्वा विरते
इत्थं सङ्गरमूर्ध्नि
इति समुचिताभि
इति सा दयितेन
इति सा निखिलं
इति सुखान्युचितानि
4
( आ )
( इ ) )
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