मधुराविजयम् /697
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अथर्ववेदिनो विप्राः
अथ लङ्घितकर्णाट
अथ वञ्चित
अथ वरतनुभिः
अथ विदितमियं
अथ विहरणखेद
अथ स तत्र महीतल
अथ सन्नद्धसैन्यस्तं
अथ सुगन्धिहिमान्
अथाग्रहीत्कम्पनृप
अथाभिभूताखिल
अथास्य वंशप्रतिरोह
अथैनमासादित
अथैभिरैश्वर्यशरीर
अथोद्भटभटक्ष्वेड
अथोरगाणामधिपस्य
अधारयद्गमित
अधारयद्दर्शित
अधिगताभिनवार्तव
अधिपङ्कजकोश
अधिरङ्गमवाप्त
अधिसङ्गरमस्य च
अनन्यसामान्य
अनिदम्प्रथमो हि
अनुदर्श मनु
अनुल्बणामायत
अनेन देशानधिकृत्य
अन्तबिम्बितचम्पेन्द्रा
2
6
5
4
5
3
4
6
3
2
3
co
3
4
3
3
8
5
8
2
∞
7
3
6
4
3
4
19
47
82
1
12
66
1
51
15
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42
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34
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9
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27
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543
191
80
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183
266
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158
150
361
423
467
495
85
497
459
157
195
272
अथ लङ्घितकर्णाट
अथ वञ्चित
अथ वरतनुभिः
अथ विदितमियं
अथ विहरणखेद
अथ स तत्र महीतल
अथ सन्नद्धसैन्यस्तं
अथ सुगन्धिहिमान्
अथाग्रहीत्कम्पनृप
अथाभिभूताखिल
अथास्य वंशप्रतिरोह
अथैनमासादित
अथैभिरैश्वर्यशरीर
अथोद्भटभटक्ष्वेड
अथोरगाणामधिपस्य
अधारयद्गमित
अधारयद्दर्शित
अधिगताभिनवार्तव
अधिपङ्कजकोश
अधिरङ्गमवाप्त
अधिसङ्गरमस्य च
अनन्यसामान्य
अनिदम्प्रथमो हि
अनुदर्श मनु
अनुल्बणामायत
अनेन देशानधिकृत्य
अन्तबिम्बितचम्पेन्द्रा
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247
297
543
191
80
160
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467
495
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497
459
157
195
272