मधुराविजयम् /43
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प्रदर्शकानि प्राचीनकवीनामर्थवैभवानि परं विभ्राजन्ते । क्वचिद्यैः
कैश्चिदपि महाकविभिर्यथाकथमप्यसंभाव्यानि रसमयानि संकल्पमात्रेण
कृतास्पदान्य लौकिकान्यपूर्ववचनानि नैकविधानि महाविधषु रत्नानीव
संप्रकाशन्ते । मद्र्याख्यानेऽप्रदर्शितानि प्रदर्शितानि च कानिचित्तत्तदुदा
हरणभावमनुभूयमानानि प्रदर्श्यन्ते ।.
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८
मधु. 1 स. 74 श्लो.
3 .स. 46
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1) 2 स. 11 श्लो. 3 स. 16 श्लो. 2 स 38 श्लो.
श्लो.
2 ) 2 स. 12 श्लो. 1 स. 61 श्लो.
18 श्लो.
3 ) 3 स. 23. 24 श्लो. 2 स. 37 श्लो.
22 श्लो.
4 ) 5 स. 8 श्लो. 4 स. 26 श्लो० 5 स. 10 श्लो.
7 स. 40 श्लो.
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6 स. 64 श्लो. 7 स.
7 स. श्लो.
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12 स. 01 श्लो.
3 स.
8 श्लो.
16
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श्लो.
2 स.
श्लो.
श्लो,
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48
2 स.
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कैश्चिदपि महाकविभिर्यथाकथमप्यसंभाव्यानि रसमयानि संकल्पमात्रेण
कृतास्पदान्य लौकिकान्यपूर्ववचनानि नैकविधानि महाविधषु रत्नानीव
संप्रकाशन्ते । मद्र्याख्यानेऽप्रदर्शितानि प्रदर्शितानि च कानिचित्तत्तदुदा
हरणभावमनुभूयमानानि प्रदर्श्यन्ते ।.
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2 ) 2 स. 12 श्लो. 1 स. 61 श्लो.
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3 ) 3 स. 23. 24 श्लो. 2 स. 37 श्लो.
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1 श्लो.
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