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138.
 
ओं शिरःस्थितायै
चन्द्रनिभायै
फालस्थायै
 
श्रीललितासहस्रनामावलिः
 
इन्द्रधनुष्प्रमायैः
 
हृदयस्थायै
 
रविप्रख्यायै
 
त्रिकोणान्तर दीपिका
 
दाक्षायण्यै
 
दैत्यहन्त्र्यै
 
नमः ओं कलानाथाये
काव्यालापविनोदिन्यै
सचामररमावाणीसव्य-
दक्षिणसेविताये
 
दक्षयज्ञविनाशिन्यै ६००
रान्दोलित
दरहासोज्ज्वलन्मुख्यै
 
गुरुमूर्त्यै
गुणनिधये
गोमाले
गुहजन्मभुवे
 
देवेश्यै
दण्डनीतिस्थागै
दहराकाशरूपिण्यै
 
प्रतिपन्मुख्यराकान्ततिथि.
मण्डलपूजितायै ६१०
 
कलात्मिकायै
 
नमः
 
आदिशक्त्यै
 
अमेयायै
 
आत्मने
 
परमायै
 
पावनाकृतये
अकोटण्डजनन्यै
दिव्य विग्रहायै
 
क्लींकायै
केवलायै
 
गुह्यायै
कैवल्यपददायिन्यै
 
त्रिपुरायै
त्रिजगद्वन्द्यायै
 
त्रिमूर्त्यै
त्रिदशेश्वयै
 
व्यक्ष
दिव्यगन्धाढ्यायै
सिन्दूर तिलकाञ्चितायै
 
६३०