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श्रीललितासहस्रनामावलिः
ओं वेदवेद्यायै
विन्ध्याचलनिवासिन्यै
विधाध्यै
वेदजनन्यै
विष्णुमायायै
विलासिन्यै
क्षेत्रस्वरूपायै
क्षेत्रेश्यै
क्षेत्रक्षेत्रज्ञपालिन्यै
क्षयवृद्धि विनिर्मुक्तायै
क्षेत्रपालसमर्चितायै
विजयायै
विमलायै
वन्द्यायै
वन्दारुजनवत्सलायै
वाग्वादिन्यै
वामकेश्यै
चह्निमण्डलवासिन्यै
भक्तिमत्कल्पलतिकायै
पशुपाशविमोचिन्यै
हताशेषपापण्डायै
सदाचारप्रवर्तिकाय
नमः ओं तापत्रयाग्निसन्तप्तसमा-
हृादनचन्द्रिकायै नमः
३४०
३५०
तरुण्यै
तापसाराध्यायै
तनुमध्याये
तमोऽपहायै
चित्यै
तत्पदलक्ष्यार्थीयै
चिदेकर सरूपिण्यै
स्वात्मानन्दलवीभूत-
ब्रह्माद्यानन्द सन्तत्यै
परायै
प्रत्यचिचती रूपायै
पश्यन्त्यै
परदेवतायै
मध्यमायै
वैखरी रूपायै
भक्तमान सहंसिकायै
कामेश्वरप्राणनाड्यै
• कृतज्ञायै
कामपूजितायै
शृङ्गाररस सम्पूर्णायै
३६०
३७०
श्रीललितासहस्रनामावलिः
ओं वेदवेद्यायै
विन्ध्याचलनिवासिन्यै
विधाध्यै
वेदजनन्यै
विष्णुमायायै
विलासिन्यै
क्षेत्रस्वरूपायै
क्षेत्रेश्यै
क्षेत्रक्षेत्रज्ञपालिन्यै
क्षयवृद्धि विनिर्मुक्तायै
क्षेत्रपालसमर्चितायै
विजयायै
विमलायै
वन्द्यायै
वन्दारुजनवत्सलायै
वाग्वादिन्यै
वामकेश्यै
चह्निमण्डलवासिन्यै
भक्तिमत्कल्पलतिकायै
पशुपाशविमोचिन्यै
हताशेषपापण्डायै
सदाचारप्रवर्तिकाय
नमः ओं तापत्रयाग्निसन्तप्तसमा-
हृादनचन्द्रिकायै नमः
३४०
३५०
तरुण्यै
तापसाराध्यायै
तनुमध्याये
तमोऽपहायै
चित्यै
तत्पदलक्ष्यार्थीयै
चिदेकर सरूपिण्यै
स्वात्मानन्दलवीभूत-
ब्रह्माद्यानन्द सन्तत्यै
परायै
प्रत्यचिचती रूपायै
पश्यन्त्यै
परदेवतायै
मध्यमायै
वैखरी रूपायै
भक्तमान सहंसिकायै
कामेश्वरप्राणनाड्यै
• कृतज्ञायै
कामपूजितायै
शृङ्गाररस सम्पूर्णायै
३६०
३७०