2023-06-14 00:25:13 by suhasm
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३. सन्दर्भ ग्रन्थ एवं उसकी पंक्ति के अतिरिक्त उस शब्द का व्याकरणात्मक
मूल्यांकन भी प्रस्तुत किया है।
४. यथा स्थान कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के पारिभाषिक शब्द भी दिये गये हैं।
५. मूल शब्द के साथ जुड़ने वाले शब्द उसी शब्द के साथ देकर उसका
अर्थ प्रस्तुत किया गया है।
जहां तक संभव हो सका वहां व्याकरण सम्बन्धी नियम भी दिये गए
६.
हैं।
.
प्रस्तुत कोश के निर्माण में 'पाइय-सद-महण्णव' तथा संस्कृत शब्द कोश
आदि कोश ग्रन्थों, आचार्य कुन्दकुन्द के समस्त ग्रन्थ, उनके टीकाकार, हिन्दी
अर्थ आदि के प्रस्तुत करने वालों से इसके शब्द चयन किये गये हैं। मूलरूप
के
में शब्द चयन का आधार बिन्दु कुन्दकुन्द भारती रहा है। अतः मैं उन सभी
महानुभावों का अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, जो इन ग्रन्थों से सम्बन्धित हैं।
इस ग्रन्थ के प्रेरक आचार्य श्री विद्यासागर जी के चरणों में शत-शत
नमन है जिनकी महान् प्रेरणा का फल यह कोश ग्रन्थ है। भाई श्री डा. प्रेमसुमन
जी जैन, उदयपुर का सक्रिय सहयोग एवं परामर्श ही उत्साहवर्धन में सदैव
सहायक रहा है। अतः मैं उनका अत्यन्त आभारी हूँ।
हमारे पूज्य परम श्रद्धेय डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया, बीना, ब्र. राकेश
जैन, जबलपुर, पूज्य काका पं. सुखानन्द जैन बम्हौरी को विस्मृत नहीं किया
जा सकता जिन्होंने सदैव उत्साहित किया। मेरी पत्नी श्रीमती माया जैन एवं
मेरे बच्चे सदा सहयोगी रहे हैं।
कोश का प्रकाशन श्री दिग. जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति के
द्वारा हो रहा है अतः उसका भी मैं अत्यन्त आभारी हूँ। जिन्होंने इसे
रूप में प्रस्तुत किया।
सधन्यवाद
For Private and Personal Use Only.
उदयचन्द जैन
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३. सन्दर्भ ग्रन्थ एवं उसकी पंक्ति के अतिरिक्त उस शब्द का व्याकरणात्मक
मूल्यांकन भी प्रस्तुत किया है।
४. यथा स्थान कुन्दकुन्द के ग्रन्थों के पारिभाषिक शब्द भी दिये गये हैं।
५. मूल शब्द के साथ जुड़ने वाले शब्द उसी शब्द के साथ देकर उसका
अर्थ प्रस्तुत किया गया है।
जहां तक संभव हो सका वहां व्याकरण सम्बन्धी नियम भी दिये गए
६.
हैं।
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प्रस्तुत कोश के निर्माण में 'पाइय-सद-महण्णव' तथा संस्कृत शब्द कोश
आदि कोश ग्रन्थों, आचार्य कुन्दकुन्द के समस्त ग्रन्थ, उनके टीकाकार, हिन्दी
अर्थ आदि के प्रस्तुत करने वालों से इसके शब्द चयन किये गये हैं। मूलरूप
के
में शब्द चयन का आधार बिन्दु कुन्दकुन्द भारती रहा है। अतः मैं उन सभी
महानुभावों का अत्यन्त कृतज्ञ हूँ, जो इन ग्रन्थों से सम्बन्धित हैं।
इस ग्रन्थ के प्रेरक आचार्य श्री विद्यासागर जी के चरणों में शत-शत
नमन है जिनकी महान् प्रेरणा का फल यह कोश ग्रन्थ है। भाई श्री डा. प्रेमसुमन
जी जैन, उदयपुर का सक्रिय सहयोग एवं परामर्श ही उत्साहवर्धन में सदैव
सहायक रहा है। अतः मैं उनका अत्यन्त आभारी हूँ।
हमारे पूज्य परम श्रद्धेय डॉ. दरबारीलाल जी कोठिया, बीना, ब्र. राकेश
जैन, जबलपुर, पूज्य काका पं. सुखानन्द जैन बम्हौरी को विस्मृत नहीं किया
जा सकता जिन्होंने सदैव उत्साहित किया। मेरी पत्नी श्रीमती माया जैन एवं
मेरे बच्चे सदा सहयोगी रहे हैं।
कोश का प्रकाशन श्री दिग. जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति के
द्वारा हो रहा है अतः उसका भी मैं अत्यन्त आभारी हूँ। जिन्होंने इसे
रूप में प्रस्तुत किया।
सधन्यवाद
उदयचन्द जैन