2023-06-16 09:56:43 by jayusudindra
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स्त्री [बोधि] उत्तमबोधि, सद्धर्म का ज्ञान । उत्तमबोहिणिमित्तं
(भाः ११०)
उत्तर
उत्तर
वि [उत्तर ] श्रेष्ठ, मुख्य। - गुण पुं न [गुण]
उत्तरगुण, विशुद्ध भावों से युक्त मुनि के गुण । बाहिरसयणत्तावण,
तरुमूलाईणि उत्तरगुणाणि । पालिह भावविसुद्धो, पूयालाहं ण
ईहंतो॥ (भा. ११३)
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उत्तरय
उत्तरय
वि [उत्तरक] मुख्य, प्रधान । उत्तरयम्मि (स.ए.भा. १४२)
उत्तरय में य स्वार्थिक प्रत्यय है। जिसके आने से अर्थ में कोई
परिवर्तन नहीं होता। सवओ लोयअपुज्जो लोउत्तरयम्मि
चलसवओ। यहां तृतीया के स्थान पर सप्तमी का प्रयोग हुआ है।
उत्तारिय
वि [उत्तारिय] पार पहुंचाया हुआ, बाहर निकला हुआ।
विसयमयरहरपडिया, भविया उत्तारिया जेहिं । (भा. १५६)
उत्ता
वि [उत्तापन] तपाया गया। खणणुत्तावण । (भा. १०)
उत्थर
सक [ उत् + स्तृ] आक्रमण करना, आच्छादन करना ।
उत्थरइ (व.प्र.ए.भा. १३)
उदअ
पुं [उदय] अभ्युदय, उत्पत्ति, आविर्भाव, उन्नयन, उत्कर्ष,
वृद्धि । अण्णाणस्स दु उदओ। ( स. १३२)
उदग
पुं न [उदक] जल, पानी । पुढवी य उदगमगणी।
( पंचा. ११०)
उदधि
पुं [उदधि] समुद्र, सागर । (शी. २८)
उदय
उदय
देखो उदअ । उदयादु (पं.ए.प्रव.ज्ञे. ६१) कम्मेण विणा उदयं ।
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