2023-06-16 09:48:52 by jayusudindra
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पुं [अवग्रह] इन्द्रियों द्वारा होने वाला सामान्य ज्ञान, अवग्रह ।
रहिदं तु उग्गहादिहि । (प्रव. ५९ )
उ
उग्गह
सक [उद्+ ग्रह् ] प्राप्त करना, ग्रहण करना । ते तेहिं
उग्गहदि। (पंचा. १३४)
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उग्गाह
सक [अव+गाह] अवगाहन करना । उग्गाहेण बहुसो,
परिभमिदो खेत्तसंसारे । ( द्वा. २६)
उच्च
सक [वद्] कहना, कथन करना, बोलना । (स.४७,
निय.७, २९,८४-८९) ववहारेण दु उच्चदि । (स. X 3 )
उच्चार
उच्चार
पुं [उच्चार] मलोत्सर्ग, विष्ठा । उच्चारादिच्चागो ।
(निय.६५)
उच्चारण
उच्चारण
न [उच्चारण ] कथन । वयणोच्चारणकिरियं ।
(निय. १२२)
उच्छाह
पुं [उत्साह] उत्साह, उद्यम, शक्ति, सामर्थ्य, पराक्रम ।
उच्छाहभावणा। (चा. १३,१४)
उच्छेद
पुं [उच्छेद] नाश, उन्मूलन । सस्सधमध उच्छेदं । (पंचा. ३७
शाश्वत्, उच्छेद, भव्य, अभव्य, शून्य, अशून्य, विज्ञान, और
आंवेज्ञान, इन आठ विकल्पों का सद्भाव होने पर ही आत्मा का
सद्भाव माना गया है।
उज्झ
सक [उज्झू] त्याग करना, छोड़ना । भावविमुत्तो मुत्तो, ण य
मुत्तो बंधवाइ मित्तेण । इय भाविऊण उज्झसु, गंथं अब्भंतरं
धीरं ॥ (भा.४३) उज्झसु ( वि. आ.म.ए.)
उज्जद
वि [उद्यत ] प्रयत्नशील, उद्यमी । वेज्जावच्चत्युज्जदो
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