2023-06-16 08:17:23 by jayusudindra
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नपुंसकलिङ्ग के प्रथमा एवं द्वितीया एकवचन में इणमो होता है।
·( हे. क्लीवे स्यमेदगिणमो च । ३ / ७९) इमं का इयं (पंचा.२) में
हुआ है।
इय
इय
अ [इति] इसलिए, इस प्रकार, इस हेतु । (स.२९०, चा.४२,
बो. ४, भा. २७) इयकग्गबंधाणं । ( स. २९० ) इय णाउं
गुणदोसं। (चा. ४२)
इयर
वि [इतर ] अन्य, दूसरा । (निय. ११)सण्णाणिदरवियग्मे ।
इयर वि [इतर ] अन्य, दूसरा ।
(निय. ११)
(निय. ११)
इरिया
स्त्री [ईर्या] गमन, गति । (चा. ३७) - वह पुं [पथ] ईर्यापथ ।
-समिदि स्त्री [समिति] ईर्यासमिति । (चा. ३२) ईर्या में संयुक्त
व्यञ्जन से पूर्व इ का आगम होने पर इरिया बन गया।
इव
इव
अ [इव] तरह, सादृश्य, तुल्य । ठिदिकिरियाजुत्ताणं कारणभूदं
तु पुढवीव । (पंचा.८६) करेंति सुहिदा इवाभिरदा । (प्रव. ७३ )
इसि
पुं [ऋषि] मुनि, श्रमण, साधु । तं सुयकेवलिमिसिणो, भणंति
लोयप्पदीवयरा । (प्रव. ७३) इसिणो (प्र.ब.)
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इह
अ [इह] ऐसा, इस प्रकार, यहाँ, इस तरह । ( स. ९८,
प्रव. १०, ३०, बो. ४, भा. ३१) रदणमिह इंदणीलं । ( प्रव. ३० )
ई
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ईसर
पुं [ईश्वर] भगवान्, परमेश्वर, प्रभु ।
ईसर
न [ऐश्वर्य] वैभव, प्रभुता, सम्पन्नता । उत्तमज्झिगगेहे, दारिद्दे
.