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आवरण न [आवरण] आच्छादित करने वाला, तिरोहित करने
वाला। (प्रव. १५) विगदावरणंतरायमोहरओ। (प्रव. १५)
आवरिय वि [आवृत] आच्छादित ढंका हुआ ।चरियावरिया
(मो. ७३)
 
आवलि स्त्री [आवलि] समयविशेष, एक सूक्ष्म कालपरिमाण,
व्यवहार काल का एक भेद । असंख्यात समय की एक आवलि
होती है। (निय. ३१) समयावलिभेदेण दु दुवियप्पं अहव होइ
तिवियप्पं । (निय. ३१)
 
आवसध पुं [आवसथ] घर, विश्राम करने का स्थान, विश्रामस्थल,
आश्रयस्थान । ( प्रव. चा. १५) आवसधे वा पुणो विहारे वा ।
( प्रव.चा. १५)
 
आवस्सय वि [आवश्यक] नित्यकर्म, अनुष्ठान, आवश्यक कर्म ।
(प्रव.चा. ८) मुनियों के अट्ठाईस मूलगुणों में छह आवश्यक होते
हैं।
 
आवास / आवासय वि [आवश्यक] आवश्यककर्म, जो परपदार्थों के
भाव को छोड़कर निर्मल स्वभाव युक्त आत्मा को ध्याता है, वह
आत्मवश है और उसके कर्म को आवश्यक कहा जाता है।
परिचत्ता परभावं, अप्पाणं झादि णिम्मलसहावं । अप्पवसो सो
होदि हु, तस्स दु कम्मं भांति आवासं ॥ (निय. १४६)
आवास पुं [आवास] निवास स्थान, गृह, निलय । बहुदोसाणावासो।
(भा. १५४) गिरिसरिदरिकंदराइ आवासो। ( भा. ८९ ) पर्वत,
नदी, गुहा और खोह आदि निवास स्थान हैं।
 
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