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मतिज्ञान । ( पंचा. ४१) आभिणिसुदोधिमणकेवलाणि ।(पंचा. ४१)
 
आम
पुं [दे] कच्चा, अपक्व, अग्निसंस्कार से रहित । पक्केसु अ
आमेसु । (प्रव.चा. ज. वृ. २७)
 
आयत्तण
वि [ आत्मत्व] आत्मत्व, आत्मपना, आत्मस्वरूप ।
(बो. ५८) - गुण पुंन [गुण] आत्मत्व गुण । (बो.५८) एवं
आयत्तणगुणपज्जत्ता। (बो ५८)
 
आयदण
न [आयतन] आश्रयस्थान, शरण । (बो. ५.भा. १३२)
पंचमहव्वयधारा, आयदणं महरिसी भणियं। (बो. ६)

आयण्ण
[आ+कर्णय्] सुनना। आयण्ण सक
आयण्णिऊण (सं.कृ.भा. १३७) आयण्णिऊण जिणधम्मं ।
 
आयरिय
पुं [आचार्य] आचार्य । पंचाचारसमग्गा,
पंचिंदियदंतिदप्पणिद्दलणा। धीरा गुणगंभीरा, आयरिया एरिसा
होंति। (निय.७३) जो पंचाचारों से परिपूर्ण, पंचेन्द्रिय रूपी हस्ती
को चूर करने वाले, धीर, वीर गुणों में गंभीर हैं, वे आचार्य हैं।
आचार्यों को पंचपरमेष्ठियों में लिया गया है। अरुहा
सिद्धायरिया, उज्झाया साहू पंचपरमेट्ठी। (मो. १०४ ) -परंपर
पुंन [परम्पर] आचार्य परम्परा, आचार्यों की अवच्छिन्न धारा।
सुत्तम्मि जं सुदिठं, आइरियपरंपरेण मग्गेण । (सू. २)
-परंपरागद वि [ परम्परागत ] आचार्य परम्परा से आया हुआ ।
एसा आयरियपरंपरागदा एरिसी दु सुई। ( स. ३३७)
 
आयरिय
वि [आचरित] आचरण किया जाना । (चा. ३१)