This page has not been fully proofread.

Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra.
 
www.kobatirth.org
 
प्रकाशकीय
 
परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के सानिध्य में ललितपुर
की प्रथम वाचना के समय सभागत विद्वानों से हुए विचार विनिमय के निष्कर्ष
रूप से जैन साहित्य एवं संस्कृति के संरक्षण / संवर्धन के उद्देश्य को प्रामुख्य कर
श्री दिग. जैन साहित्य संस्कृति संरक्षण समिति का गठन हुआ था।
 
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
 
गठन के समय ही प्रस्ताव आया कि वर्तमान में दिगम्बर जैन साहित्य के
अग्रगण्य आचार्य कुन्दकुन्द के समय निर्धारण को लेकर साहित्य जगत् में मन-
माने ताने बाने बुने जा रहे हैं तथा कई प्रकार का असद् प्रलाप भी मुखरित हो
रहा है। अतः इस दिशा में ही सर्वप्रथम कार्य किया जाना नितान्त आवश्यक
है। हमें अपने सद्प्रयासों से उसे पुनः स्थापित करना चाहिए।
 
इस समस्या पर गहराई से विचार करते हुए ही भारतवर्ष तथा विदेशों के
जैन एवं जैनेतर जनमानस को आचार्य कुन्दकुन्द और उनके लोकोपकारी साहित्य
से परिचय कराते हुए मन-माने वाग्जालों पर प्रश्न चिन्ह अंकित करने के लिए
समिति ने "आचार्य कुन्दकुन्द द्विसहस्राब्दी महोत्सव" सम्पूर्ण देश के अनेक भागों
में मनाने तथा मनाने की प्रेरणा देने का निर्णय किया तथा इसके आरम्भ करने
की उद्घोषणा ११, १२ और १३ जुलाई ८७ को यूबोन जी में एक स्तरीय
आयोजन के साथ की।
 
C
 
प्रसन्नता है कि जैन समाज के कर्मठ कार्यकर्ताओं ने इसमें सराहनीय
योगदान कर इसे सफल बनाया जिसके ही फलस्वरूप अब देश के आबालवृद्ध
को जानकारी हो सकी कि आचार्य कुन्दकुन्द को इस भारत वसुन्धरा को पवित्र
किये हुए दो हजार वर्ष हो गये हैं। इस सन्दर्भ को प्रमाणित रूप से विद्वज्जगत
के समक्ष रखने के लिए समिति ने डा. ए. एन. उपाध्ये जी द्वारा लिखित प्रवचनसार
की प्रस्तावना का हिन्दी रूपान्तरण कराकर प्रस्तुत किया। इस दौरान आचार्य
कुन्दकुन्द से सम्बन्धित अनेक ग्रन्थ एवं जानकारियां प्रकाशित हुई जो कि स्वागतेय
 
For Private and Personal Use Only