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44
असरीर पुं न [अशरीर ] शरीर रहित, सिद्ध का एक गुण ।
(निय ४८) असरीरा अविणासा, अजिंदिया णिम्मला विसुद्धप्पा ।
असह वि [असह] असहिष्णु, सहन न करना । असहंता (व. कृ. प्रव
६३) असहंता तं दुक्खं, रमंति विसएसु रम्मेसु ।
असहणीय वि [असहनीय] न सहने योग्य, अत्यन्त कठोर। (भा. ९)
असहाय वि [असहाय ] सहायता बिना, सहायता रहित, सहायता
से निरपेक्ष। (निय. १११. १३६) गुणपुंन [गुण] असहायगुण,
स्वापेक्ष गुणों से युक्त । (निय.१३६)
असार वि [असार] सार रहित, सारहीन, निस्सार । ( भा. ११०)
- संसार वि [संसार ] असार-संसार । (भा.
(भा. ११० )
उत्तमबोहिणिमित्तं असारसंसार मुणिऊण ।
असियसय पुं न [ अशीतिशत् ] एक सौ अस्सी । (भा. १३६ )
मिथ्यादृष्टियों के ३६३ भेदों में क्रियावादियों के एक सौ अस्सी भेद
गिनाये गये हैं। असियसयकिरियावाई । (भा. १३६)
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,
असीदि पुं न [अशीति] अस्सी, द्वीन्द्रियादि जीवों के भवों का जो
वर्णन किया गया है, उसमें द्वीन्द्रियों के ८० भव गिनाये हैं।
वियलिंदिए असीदी। (भा. २९)
असुइ/असुचि वि [अशुचि] अपवित्र, मलिन । (भा. ४१, द्वा.४५)
-त्त वि [त्व] अशुचिता, अपवित्रता । ( स. ७२, द्वा. २) - मज्झ
न [मध्य] अपवित्रस्थान । असुइमज्झम्मि । ( स.ए.) असुइमज्झम्मि
लोलिओ सि तुमं । (भा. ४१)
असुत्त न [असूत्र] 1. ज्ञानरहित, आगमरहित । (सू. ३) 2.
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असरीर पुं न [अशरीर ] शरीर रहित, सिद्ध का एक गुण ।
(निय ४८) असरीरा अविणासा, अजिंदिया णिम्मला विसुद्धप्पा ।
असह वि [असह] असहिष्णु, सहन न करना । असहंता (व. कृ. प्रव
६३) असहंता तं दुक्खं, रमंति विसएसु रम्मेसु ।
असहणीय वि [असहनीय] न सहने योग्य, अत्यन्त कठोर। (भा. ९)
असहाय वि [असहाय ] सहायता बिना, सहायता रहित, सहायता
से निरपेक्ष। (निय. १११. १३६) गुणपुंन [गुण] असहायगुण,
स्वापेक्ष गुणों से युक्त । (निय.१३६)
असार वि [असार] सार रहित, सारहीन, निस्सार । ( भा. ११०)
- संसार वि [संसार ] असार-संसार । (भा.
(भा. ११० )
उत्तमबोहिणिमित्तं असारसंसार मुणिऊण ।
असियसय पुं न [ अशीतिशत् ] एक सौ अस्सी । (भा. १३६ )
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वियलिंदिए असीदी। (भा. २९)
असुइ/असुचि वि [अशुचि] अपवित्र, मलिन । (भा. ४१, द्वा.४५)
-त्त वि [त्व] अशुचिता, अपवित्रता । ( स. ७२, द्वा. २) - मज्झ
न [मध्य] अपवित्रस्थान । असुइमज्झम्मि । ( स.ए.) असुइमज्झम्मि
लोलिओ सि तुमं । (भा. ४१)
असुत्त न [असूत्र] 1. ज्ञानरहित, आगमरहित । (सू. ३) 2.
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