2023-06-16 07:02:24 by jayusudindra
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किये हैं। जो माध्यस्थ भावना मय हो कर्म से भिन्न तथा निर्मल
गुणों के निवास स्वरूप आत्मा का चिंतन करता है, वह भावना
अविकृतीकरण है। कम्मादो अप्पाणं, भिण्णं भावेइ
विमलगुणणिलयं । मज्झत्थभावणाए, वियडीकरणं त्ति
विण्णेयं ॥ (निय. १११)
अवियत्थ
वि [अवितार्थ ] यथार्थ, सम्यक् सही। (मो. ४१ )
अवियत्यं सव्वदरसीहि ।
अवियप्प
वि [ अविकल्प] भेद रहित, संशयादि रहित ।
( पंचा. १५९, मो.४२) अवियप्पं कम्मरहिएण। (मो. ४२)
अवियार
वि [ अविकार] 1. विकार रहित, परिवर्तन रहित ।
(भा. ११०) 2. वि [अविचार] विचार रहित, विकल्प रहित ।
अविरइ / अविरदि
स्त्री [अविरति] पापकर्मों से अनिवृत्ति, दुष्कर्मों में
प्रवृत्ति । (स. ८७, ८८)
अविरमण
वि [अविरमण] अविरति । ( स. १६४) मिच्छत्तं
अविरमणं ।
अविरय
अविरय
वि [अविरत] अविच्छिन्न, निरन्तर, पापकर्मों से निवृत्ति
रहित । अविरयभावो य जोगो य (स. १९०)
अविरु
वि [अविरुढ] अतिदृढ नहीं। (पंचा. १०७)
अविरुद्ध
वि [ अविरुद्ध] अविरूद्ध, ठीक, अनुकूल, अविपरीत।
(पंचा. ५४) अण्णोण्ण विरुद्धमविरुद्धं । (पंचा. ५४ )
अविवरीद
वि [अविपरीत ] यथार्थ, विपरीत से रहित । ( स. १८३)
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