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-गंधजुत्त वि [गंधयुक्त] अभ्यंतर गंध से युक्त। -लिंगन [लिंङ्ग]
आभ्यन्तर लिंङ्ग, आभ्यंतरचिन्ह । (भा. १११) अभंतरलिंग
सुद्धिमावण्णो।
 
अभिंतर न [अभ्यन्तर] अन्तरंग । ( भा. ७० ) - भाव पुं [भाव ]
अन्तरंग भाव। (भा.७०) अब्मिंतर-भावदोसपरिसुद्धो ।
अब्भुट्ठाण न [अभ्युत्थान] आदर के लिए खड़ा होना, सम्मान में
खड़ा होना। (प्रव.चा.४७) अब्भुट्ठाणाणुगमणपडिवत्ती।
अब्भुट्ठिद वि [अभ्युत्थित] उद्यत, सावधान, सद्भाव । (प्रव ९२ )
अब्भुट्ठिदो महप्पा। (निय. १५२) समणो अब्भुट्ठिणो होदि ।
अब्भुट्ठेय वि [अभ्युत्थेय] सम्मान के लिए खड़े होने योग्य।
(प्रव.चा.६३) अब्भुट्ठेयसमणा ।
 
अब्भुदय पुं [अभ्युदय ] स्वर्ग, वैभव, उन्नति, उदय । ( भा. १२७)
- परंपरा स्त्री [परम्परा] स्वर्ग की परंपरा, उन्नति की परंपरा
अब्भुदयपरंपराइं सोक्खाई।
 
अब्भुवसक [अभ्युप] अंगीकार करना । (स.४०४)
अभत्ति वि [अभक्ति ] भक्ति नहीं करने वाला। (निय. १८५)
अभत्तिं मा कुणह जिणमग्गे । (निय. १८५)
 
अभयदाण न [अभयदान] जीवनदान, अभय देना । ( भा. १३५ )
जीवाणमभयदाणं । (भा. १३५ )
 
अभवियसत्त पुं [अभव्यसत्त्व] अभव्यप्राणी । (स.२७४)
अभवियसत्तो दु जो अधीएज्ज ।
 
अभव्य पुं [अभव्य ] अभव्य, मुक्ति जाने के अयोग्य, जो
 
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