2023-06-19 07:51:28 by jayusudindra
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सुरब
वि [सुरत] अच्छी तरह से लीन, संलग्न, तत्पर । आदसहावे
सुरओ। (मो. १२)
सुरत्तपुत्त
पुं [सुरक्तपुत्र] रुद्र, दशपूर्वो का पाठी। तो सो सुरत्तपुत्तो।
(शी. ३०)
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सुलभ
वि [सुलभ ] सुखपूर्वक प्राप्त सुप्राप्त । णवरि ण सुलभो
विहत्तस्स । ( स. ४)
सुविदिद
वि [सुविदित] अच्छी तरह ज्ञात, जाना हुआ। (प्रव. १४)
सुविहि
पुं [सुविधि] सुविधिनाथ, नवम तीर्थङ्कर । (ती. भ. ४)
सुब्ब
सुव्वय
पुं [सुव्रत] सुव्रतनाथ, बीसवें तीर्थङ्कर । (ती.भ.५)
सुसील
न [सुशील ] उत्तम स्वभाव, श्रेष्ठ आचरण । (स.१४५,
प्रव ६९) शुभकर्म सुशील है। सुहकम्मं चावि जाणह सुसीलं।
(स. १४५)
सुह
न [सुख ] 1. सुख, आनन्द, शान्ति । ( पंचा. १२५, प्रव. १३,
निय.१०५,स.१९४,भा.१३३, चा. ४३) सुहं दुक्खं ते भुंजंति ।
(पंचा. ६७) - कारणट्ठ। वि [कारणार्थ] सुखक रणार्थ, सुख के
कारण भूत। भोयसुहकारणठ्ठे (भा. १३३) 2. पुं न [शुभ] शुभ,
मङ्गल, कल्याण, नामकर्म का एक भेद । (पंचा. १३२, स. ३७५,
प्रव.९, निय. १४४, भा. १३५) असुहो सुहो व गंधो। (स.३७७)
जिस जीव के मोह, राग, द्वेष, और चित्त की प्रसन्नता रहती है,
उसके शुभ परिणाम होता है। (पंचा. १३१) - उप्पाअ पुं [उत्पाद]
शुभ की उत्पत्ति, शुभ का प्रादुर्भाव । ( स. २२४-२२७) विविहे
भोए सुहुप्पाए। (स.२२५) - उबओगप्पग वि [उपयोगात्मक] शुभ
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