2023-06-14 00:23:35 by suhasm
This page has not been fully proofread.
.
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचार्य कुन्द-कुन्द का जैन बाङ्गमय में मूर्धन्य स्थान
है। वे आगम साहित्य के प्रणेता के रूप में परवर्ती
आचार्थी द्वारा "मंगलं कुन्द- कुन्दाद्यों" के द्वारा सदैव
पुण्य स्मरणीय रहे हैं। बे अब से लगभग दो हजार
वर्ष पूर्व इस भारत वसुन्धरा के कोंण्ड-कोंण्ड नगर में
अवतरित हुए थे। उनके सिद्धान्त ग्रंथ पंचास्तिकाय,
समयसार, आदि जैन सिद्धान्त के मूल भूत तत्वों से
भरपूर हैं। इनके स्वाध्याय, मनन एवं पठन-पाठन की
प्रथा इस भौतिक युग में अत्यधिक उपयुक्त समझी जा
रही है पर ये सभी ग्रंथ शौर सेनी प्राकृत में होने के
कारण सर्व सामान्य जन इन्हें समझने में असमर्थ हैं।
अतः "कुन्द-कुन्द द्वि-सहस्राब्दि" वर्ष के शुभ अवसर
पर यह उपयुक्त समझा गया कि प्राचार्य कुन्द-कुन्द के
ग्रंथों में स्थित शब्दों का सही और वैज्ञानिक सरलीकरण
हो, इसलिए सुखाड़िया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री
उदयचन्द्र जी द्वारा संकलित यह "कुन्द-कुन्द शब्द
कोश" स्वाध्याय प्रेमियों की सेवा में सादर सस्नेह
समर्पित है।
इस शुभ कार्य में हमें आचार्य श्री विद्यासागर जी
महाराज की प्रेरणा एवं मंगल आशीर्वाद प्राप्त हुआ ।
अतः हम उनके प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं ।
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचार्य कुन्द-कुन्द का जैन बाङ्गमय में मूर्धन्य स्थान
है। वे आगम साहित्य के प्रणेता के रूप में परवर्ती
आचार्थी द्वारा "मंगलं कुन्द- कुन्दाद्यों" के द्वारा सदैव
पुण्य स्मरणीय रहे हैं। बे अब से लगभग दो हजार
वर्ष पूर्व इस भारत वसुन्धरा के कोंण्ड-कोंण्ड नगर में
अवतरित हुए थे। उनके सिद्धान्त ग्रंथ पंचास्तिकाय,
समयसार, आदि जैन सिद्धान्त के मूल भूत तत्वों से
भरपूर हैं। इनके स्वाध्याय, मनन एवं पठन-पाठन की
प्रथा इस भौतिक युग में अत्यधिक उपयुक्त समझी जा
रही है पर ये सभी ग्रंथ शौर सेनी प्राकृत में होने के
कारण सर्व सामान्य जन इन्हें समझने में असमर्थ हैं।
अतः "कुन्द-कुन्द द्वि-सहस्राब्दि" वर्ष के शुभ अवसर
पर यह उपयुक्त समझा गया कि प्राचार्य कुन्द-कुन्द के
ग्रंथों में स्थित शब्दों का सही और वैज्ञानिक सरलीकरण
हो, इसलिए सुखाड़िया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री
उदयचन्द्र जी द्वारा संकलित यह "कुन्द-कुन्द शब्द
कोश" स्वाध्याय प्रेमियों की सेवा में सादर सस्नेह
समर्पित है।
इस शुभ कार्य में हमें आचार्य श्री विद्यासागर जी
महाराज की प्रेरणा एवं मंगल आशीर्वाद प्राप्त हुआ ।
अतः हम उनके प्रति हृदय से कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं ।
For Private and Personal Use Only