2023-06-14 00:23:39 by suhasm
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निर्जरा करता है तथा वेदनीय एवं आयुकर्म को नष्ट कर नाम,
गोत्र पर्याय का परित्याग करता है, उसको मोक्ष होता है।
(पंचा. १५३) -उवाअ पुं [उपाय] मोक्ष का उपाय, मुक्ति का
साधन। (निय.२,४) मग्गो मोक्खउवाओ। -काम पुं [काम] मोक्ष
की अभिलाषा, मोक्ष की आकांक्षा । ( स. १८) सो चेव
मोक्खकामेण । ( स. १८) -गय वि [गत] मोक्ष को प्राप्त हुआ।
(निय. १३५) -पह पुं [पथिन् ] मोक्षपथ, मुक्तिमार्ग।
(निय.१३६, स.४११, ४१४) मोक्खपहे अप्पाणं। (निय. १३६)
- मग्ग पुं [मार्ग] मोक्षमार्ग। ( पंचा. १६०, स. २६७, द. ११,
सू. २०,
बो.२०-२२,
चा.३९) दंसणणाणचरित्ताणि
मोक्खमग्गोत्ति । (पंचा. १६४) जो मुनि पाँच महाव्रतों से युक्त एवं
तीन गुप्तियों सहित होता है, वही संयत है और वही निर्ग्रन्थ
मोक्षमार्ग है। (सू. २०) हेउपुं [हेतु] मोक्ष का कारण ।
(स. १५४) मोक्खहेउं अजाणंता । (स.१५४)
मोण न [मौन] वाणी का संयम, मूकभाव । (निय.१५५, सू.२१,
मो. २८) मोणं वा होइ वचिगुत्ति । (निय ६९ ) - व्वय पुंन [व्रत]
मौनव्रत, वाणी के संयम की प्रतिज्ञा । (निय. १५५, मो. २८)
मोणव्वएण जोई। (मो.२८)
मोत्त वि [मूर्त] रूपवाला, आकारवाला । (निय. ३७) पोग्गलदव्वं
मोत्तं । (निय. ३७)
निय.३४,
मोत्त सक [मुच्] छोड़ना, त्यागना । ( स. १५६,
भा. १०६) मोत्तूण अणायारं । (निय. ८५) मोत्तूण
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निर्जरा करता है तथा वेदनीय एवं आयुकर्म को नष्ट कर नाम,
गोत्र पर्याय का परित्याग करता है, उसको मोक्ष होता है।
(पंचा. १५३) -उवाअ पुं [उपाय] मोक्ष का उपाय, मुक्ति का
साधन। (निय.२,४) मग्गो मोक्खउवाओ। -काम पुं [काम] मोक्ष
की अभिलाषा, मोक्ष की आकांक्षा । ( स. १८) सो चेव
मोक्खकामेण । ( स. १८) -गय वि [गत] मोक्ष को प्राप्त हुआ।
(निय. १३५) -पह पुं [पथिन् ] मोक्षपथ, मुक्तिमार्ग।
(निय.१३६, स.४११, ४१४) मोक्खपहे अप्पाणं। (निय. १३६)
- मग्ग पुं [मार्ग] मोक्षमार्ग। ( पंचा. १६०, स. २६७, द. ११,
सू. २०,
बो.२०-२२,
चा.३९) दंसणणाणचरित्ताणि
मोक्खमग्गोत्ति । (पंचा. १६४) जो मुनि पाँच महाव्रतों से युक्त एवं
तीन गुप्तियों सहित होता है, वही संयत है और वही निर्ग्रन्थ
मोक्षमार्ग है। (सू. २०) हेउपुं [हेतु] मोक्ष का कारण ।
(स. १५४) मोक्खहेउं अजाणंता । (स.१५४)
मोण न [मौन] वाणी का संयम, मूकभाव । (निय.१५५, सू.२१,
मो. २८) मोणं वा होइ वचिगुत्ति । (निय ६९ ) - व्वय पुंन [व्रत]
मौनव्रत, वाणी के संयम की प्रतिज्ञा । (निय. १५५, मो. २८)
मोणव्वएण जोई। (मो.२८)
मोत्त वि [मूर्त] रूपवाला, आकारवाला । (निय. ३७) पोग्गलदव्वं
मोत्तं । (निय. ३७)
निय.३४,
मोत्त सक [मुच्] छोड़ना, त्यागना । ( स. १५६,
भा. १०६) मोत्तूण अणायारं । (निय. ८५) मोत्तूण
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