2023-06-14 00:24:26 by suhasm
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पुंस [पुंस्] पुरुष । (निय ४५ )
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Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir.
पुंचली स्त्री [पुंश्चली] कुलटा, व्यभिचारिणी । (लिं. २१) - घर न
[गृह] व्यभिचारिणी के घर । ( लिं. २१)
पुग्गल पुं न [पुद्गल] मूर्त द्रव्य, रूपी पदार्थ, द्रव्य का एक भेद ।
जिसमें रूप, रस, गन्ध एवं वर्ण पाये जाते हैं वह पुद्गल है।
( पंचा. ७६, स.८०, प्रव ५६, निय. ३२ ) -कम्म पुं न [कर्मन् ]
पुद्गलकर्म। मिथ्यात्व, अविरति, योग, अजीव और अज्ञान
पुद्गल कर्म हैं। (स.८८) -कम्मफल पुं न [कर्मफल ] पुद्गल कर्म
फल। (स. ७८) -करण न [करण] पुद्गल का निमित्त ।
( पंचा. ९८) -काय पुं [काय] पुद्गल समूह, स्कन्ध । (पंचा.९८)
-दव्व पुं न [द्रव्य ] पुद्गल द्रव्य । (पंचा. ६६, स. ३२९ ) - दब्बीभूद
वि [द्रव्यीभूत] पुद्गलद्रव्यरूप, पुद्गलद्रव्यमय । ( स. २४, २५ )
जदि सो पुग्गलदव्वीभूदो। -भाव पुं [ भाव ] पुद्गलभाव ।
( स. ८६ ) - मइ / मय पुं [मय ] पुद्गलमय, पुद्गलात्मक,
पुद्गलरूप। (स.६६, २८७)
पुज्ज वि [पूज्य] पूजनीय । (बो. १६)
,
पुढवी स्त्री [पृथिवी] भूमि, धरती, पांच स्थावरों का एक भेट ।
( पंचा. ११०, प्रव. ज्ञे. ४०, लिं. १५)
पुट्ठ वि [स्पृष्ट] छुआ हुआ। (स.१४१, पंचा.८३)
पुट्ठिय वि [पुष्टित] पुष्टीकर, ताकतवर । (चा. ३५)
पुण/पुणो अ [पुनः] फिर, और, इसके अनन्तर, चूंकि, इस तरह, जो
कि, तथा, किन्तु । (पंचा. ६०, स. १४२, प्रव. २,२०, ६१ ) - आगमण
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पुंस [पुंस्] पुरुष । (निय ४५ )
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पुंचली स्त्री [पुंश्चली] कुलटा, व्यभिचारिणी । (लिं. २१) - घर न
[गृह] व्यभिचारिणी के घर । ( लिं. २१)
पुग्गल पुं न [पुद्गल] मूर्त द्रव्य, रूपी पदार्थ, द्रव्य का एक भेद ।
जिसमें रूप, रस, गन्ध एवं वर्ण पाये जाते हैं वह पुद्गल है।
( पंचा. ७६, स.८०, प्रव ५६, निय. ३२ ) -कम्म पुं न [कर्मन् ]
पुद्गलकर्म। मिथ्यात्व, अविरति, योग, अजीव और अज्ञान
पुद्गल कर्म हैं। (स.८८) -कम्मफल पुं न [कर्मफल ] पुद्गल कर्म
फल। (स. ७८) -करण न [करण] पुद्गल का निमित्त ।
( पंचा. ९८) -काय पुं [काय] पुद्गल समूह, स्कन्ध । (पंचा.९८)
-दव्व पुं न [द्रव्य ] पुद्गल द्रव्य । (पंचा. ६६, स. ३२९ ) - दब्बीभूद
वि [द्रव्यीभूत] पुद्गलद्रव्यरूप, पुद्गलद्रव्यमय । ( स. २४, २५ )
जदि सो पुग्गलदव्वीभूदो। -भाव पुं [ भाव ] पुद्गलभाव ।
( स. ८६ ) - मइ / मय पुं [मय ] पुद्गलमय, पुद्गलात्मक,
पुद्गलरूप। (स.६६, २८७)
पुज्ज वि [पूज्य] पूजनीय । (बो. १६)
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पुढवी स्त्री [पृथिवी] भूमि, धरती, पांच स्थावरों का एक भेट ।
( पंचा. ११०, प्रव. ज्ञे. ४०, लिं. १५)
पुट्ठ वि [स्पृष्ट] छुआ हुआ। (स.१४१, पंचा.८३)
पुट्ठिय वि [पुष्टित] पुष्टीकर, ताकतवर । (चा. ३५)
पुण/पुणो अ [पुनः] फिर, और, इसके अनन्तर, चूंकि, इस तरह, जो
कि, तथा, किन्तु । (पंचा. ६०, स. १४२, प्रव. २,२०, ६१ ) - आगमण
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