2023-06-14 00:23:39 by suhasm
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214
परिसन [स्पर्श] स्पर्श, छूना । (चा. ३६)
परिसह/परीसह पुं [परिषह] उपसर्ग, बाधा, व्यवधान। (भा.९४)
परिसहेहिंतो ( पं. ब.भा. ९५)
परिहर सक [ परि+हृ] त्याग करना, छोड़ना । परिहरंति (व.प्र.ब.)
परिहरदि (व.प्र.ए.मो.३६) परिहरत्तु (सं.कृ.निय. १२१)
परिहर / परिहरि (वि./आ.म.ए.भा.१३२,चा.१६)
परिहार पुं [परिहार] त्याग, विरक्त । (निय.६६, चा.२४, मो.४२)
-विसुद्धि वि [विशुद्धि] परिहारविशुद्धि, चारित्र का एक भेद
(चा. भ. ३)
परिहीण [परिहीन] कम, हीन, रहित, निम्न । (निय.१४९,
शी.१८) सव्वे वि परिहीणा । (शी. १८)
परीक्ख सक [ परि+ईक्ष् ] परीक्षा करना । परीक्खऊण
(सं.कृ.निय. १५५)
परूव सक [प्र
+ रूपय् ] निरूपण करना, कथन करना, कहना ।
( पंचा. १२, स. ३९) परूवंति (व.प्र.ब.पंचा. १२१, १५७)
परूविंति (व.प्र.ब. पंचा. १२, स. ३९) परूवेंति (व.प्र.ब.निय.२४,
प्रव. ३९ )
परूवण [प्ररूपण] निरूपण, कथन । (निय. ४)
परूविद, वि [प्ररूपित] प्रतिपादित, कथित, निरूपित ।
(पंचा. ५१, प्रव.ज्ञे. ९६)
परोक्ख न [परोक्ष] 1. अप्रत्यक्ष, इन्द्रियादि साधनों के द्वारा होने
वाले ज्ञान को परोक्ष कहा जाता है। (निय. १६८) -भूद वि [भूत]
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परिसन [स्पर्श] स्पर्श, छूना । (चा. ३६)
परिसह/परीसह पुं [परिषह] उपसर्ग, बाधा, व्यवधान। (भा.९४)
परिसहेहिंतो ( पं. ब.भा. ९५)
परिहर सक [ परि+हृ] त्याग करना, छोड़ना । परिहरंति (व.प्र.ब.)
परिहरदि (व.प्र.ए.मो.३६) परिहरत्तु (सं.कृ.निय. १२१)
परिहर / परिहरि (वि./आ.म.ए.भा.१३२,चा.१६)
परिहार पुं [परिहार] त्याग, विरक्त । (निय.६६, चा.२४, मो.४२)
-विसुद्धि वि [विशुद्धि] परिहारविशुद्धि, चारित्र का एक भेद
(चा. भ. ३)
परिहीण [परिहीन] कम, हीन, रहित, निम्न । (निय.१४९,
शी.१८) सव्वे वि परिहीणा । (शी. १८)
परीक्ख सक [ परि+ईक्ष् ] परीक्षा करना । परीक्खऊण
(सं.कृ.निय. १५५)
परूव सक [प्र
+ रूपय् ] निरूपण करना, कथन करना, कहना ।
( पंचा. १२, स. ३९) परूवंति (व.प्र.ब.पंचा. १२१, १५७)
परूविंति (व.प्र.ब. पंचा. १२, स. ३९) परूवेंति (व.प्र.ब.निय.२४,
प्रव. ३९ )
परूवण [प्ररूपण] निरूपण, कथन । (निय. ४)
परूविद, वि [प्ररूपित] प्रतिपादित, कथित, निरूपित ।
(पंचा. ५१, प्रव.ज्ञे. ९६)
परोक्ख न [परोक्ष] 1. अप्रत्यक्ष, इन्द्रियादि साधनों के द्वारा होने
वाले ज्ञान को परोक्ष कहा जाता है। (निय. १६८) -भूद वि [भूत]
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