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श्रेष्ठ ज्ञाता । (नि. भ. ४) -णिब्बाण न [निर्वाण] परमनिर्वाण,
परमुक्ति, परमशक्ति। (निय. ४) त्यवि [अर्थ ]
 
परमार्थ ।
 
(निय.५८,सू.५७,स.८, भा. २, बो. २२) - प्य पुं [पद] परमपद,
मोक्षपद । (मो. २) प्पा पुं [आत्मन् ] परमात्मा । (निय. ७,
भा. १५० ) -प्पअ /प्पय वि [आत्मक] परमात्मा । (मो. २४,४८)
- प्याण पुं[आत्मन् ] परमात्मा । (मो. २) - भत्ति स्त्री [भक्ति ]
उत्कृष्ट सेवा, उत्तम विनय । (भा. १५२, निय. १३५ ) - भाग पुं
[भाग] सर्वोत्तम स्थान, दूसरा स्थान । ( मो. ९) भाव पुं [ भाव ]
उत्कृष्ट भाव, उत्तम भाव । (स.१२, निय. १४६ ) - सद्धा स्त्री
[ श्रद्धा ] परमश्रद्धा, उत्तम श्रद्धान । (चा. ४२) - समाहि पुं स्त्री
[समाधि] उत्तम समाधि, श्रेष्ठ समताभाव । (निय. १२२,१२३)
परमाणु पुं [परमाणु] 1. सर्वसूक्ष्म, अणु, समस्त स्कन्धों का अन्तिम
भेद । जो नित्य, शब्द रहित, एक अविभागी, मूर्त स्कन्ध से उत्पन्न
होता है। जो पृथिवी, जल, वायु, तेज, और वायु का समान
कारण है, परिणमनशील है। (पंचा. ७७, ७८) सव्वेसिं खधाणं, जो
अंतो तं वियाण परमाणू। परमाणु एक प्रदेशी है अपदेसो परमाणू।
( प्रव. ज्ञे. ४५) यद्यपि परमाणु एक प्रदेशी है, फिर भी वह स्निग्ध
और रूक्ष गुणों के कारण एक दूसरे परमाणुओं के साथ मिलकर
स्कन्ध बन जाता है। (प्रव.ज्ञे. ७१) 2. अल्प, लघु, अणु । ( स. ३८)
- पमाण पुं [ प्रमाण] परमाणु प्रमाण । ( प्रव.चा. ३९ ) मित्त न
[मात्र] परमाणु मात्र, थोड़ा भी। ( स. ३८) अण्णं परमाणुमित्तं
वि[मात्रक] परमाणुमात्र, लेशमात्र, कुछ
 
पि।
 
-मित्तय
 
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