2023-06-14 00:20:54 by suhasm
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( प्रव. १८)
पज्जालण वि [प्रज्वालन] जलाने वाला, जलाने योग्य । (पं.भ.६)
गज्जुण्ण पुं [प्रद्युम्न ] प्रद्युम्न, एक मुनि विशेष । (नि.भ.५)
पढमाणुओग पुं [ प्रथमानुयोग] ग्रन्थ विशेष, प्रथमानुयोग ।
( श्रु.भ.४, श्रु.भ.अं.)
पड पुं [पट] वस्त्र, कपड़ा। (स.९८, १००) जीवो ण करेदि घडं,
णेव पडं ।
पड अक [पत्] पड़ना, गिरना । जे वि पडंति च तेसिं । (द.१३)
पडि अ [प्रति] 1. निषेध, उपसर्ग विशेष । पडिवज्जदु ( प्रव.चा. ५२ )
2. निकटता, समीपता । पडिसरणं ( स. ३०६ )
पडिअ वि [पतित] गिरा हुआ, च्युत । ( भा. ४९) पक्के फलम्हि
पडिए। ( स. १६८)
पडिकमण / पडिक्कमण न [प्रतिक्रमण] प्रमाद से किये हुए पाप का
पश्चात्ताप, छह आवश्यकों में एक भेद, जैन मुनि एवं गृहस्थों
द्वारा सुबह एवं शाम को किया जाने वाला धार्मिक अनुष्ठान ।
(निय.९४) जो उन्मार्ग को छोड़कर जिनमार्ग में स्थिर भाव
करता है, उसे प्रतिक्रमण होता है। (निय.८६)
पडिक्कम अक [प्रति + क्रम्] पीछे की ओर चलना, प्रतिक्रमण
करना, पापों का पश्चात्ताप करना । ( स. ३८६)
( णिच्चं य
पडिक्कमदि जो ।
पडिच्छ सक [प्रति+इष्] ग्रहण करना, मानना, चाहना । ( प्रव.६२ )
भव्वा वा तं पडिच्छंति। पडिच्छंति (व.प्र.ब.) पडिच्छ
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