2023-06-14 00:24:25 by suhasm
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पजंपिय वि [प्रजम्पित] कथित। (मो. ३८)
पजह सक [प्र+हा ] त्याग करना, छोड़ना । ( प्रव. ज्ञे. २०) पजहे
( वि. / आ.प्र.ए.स.२२२) पजहिदूण (सं.कृ.स.२२३)
पज्जअ /पज्जय पुं [पर्यय] पर्यय, क्रम, परिपाटी । (पंचा.५, १६,
स. ३०८, प्रव.४१) देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यञ्च ये जीव की
पर्यायें हैं। (पंचा.१६) -द्विअ वि [आर्थिक] पर्यायार्थिक, नय
विशेष । पर्यायार्थिकनय से वस्तु या द्रव्य अन्य-अन्य रूप होता है।
(प्रव.ज्ञे. २२) -त्त वि [त्व] पर्यायत्व । (प्रव. ८०) -त्थ वि [अर्थ]
पर्यायार्थिक। (प्रव.ज्ञे.१९) -मूढ वि [मूढ] पर्यायमूद, पर्याय में
मुग्ध । -विजुद वि [वियुक्त ] पर्याय रहित । ( पंचा. १२)
पज्जयविजुदं दव्वं ।
पज्जत्त न [पर्याप्त] कर्म विशेष, नाम कर्म का एक भेद, जिसके
उदय से जीव छहों पर्याप्तियों से युक्त होता है। (स.६७)
पज्जत्ति स्त्री [पर्याप्ति] पर्याप्ति, कर्मविशेष । (बो.३३,३६)
आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मन, ये छह
पर्याप्तियां हैं।
पज्जल अक [प्र + ज्वल्] जलना, दग्ध होना । ( भा. १२२ )
पज्जाअ / पज्जाय पुं [पर्याय] पर्याय, परिणमन, पदार्थस्वभाव ।
( पंचा. ११) देव की उत्पत्ति एवं मनुष्य का मरण होना, यही
पर्याय-परिणमन है। (पंचा. १८) प्रवचनसार में इसी बात को
इस तरह कहा गया है ---उप्पादो य विणासो, विज्जदि सव्वस्स
अत्यजादस्स । पज्जाएण दु केण वि, अत्थो खलु होदि सब्भूदो ।
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पजंपिय वि [प्रजम्पित] कथित। (मो. ३८)
पजह सक [प्र+हा ] त्याग करना, छोड़ना । ( प्रव. ज्ञे. २०) पजहे
( वि. / आ.प्र.ए.स.२२२) पजहिदूण (सं.कृ.स.२२३)
पज्जअ /पज्जय पुं [पर्यय] पर्यय, क्रम, परिपाटी । (पंचा.५, १६,
स. ३०८, प्रव.४१) देव, मनुष्य, नारकी और तिर्यञ्च ये जीव की
पर्यायें हैं। (पंचा.१६) -द्विअ वि [आर्थिक] पर्यायार्थिक, नय
विशेष । पर्यायार्थिकनय से वस्तु या द्रव्य अन्य-अन्य रूप होता है।
(प्रव.ज्ञे. २२) -त्त वि [त्व] पर्यायत्व । (प्रव. ८०) -त्थ वि [अर्थ]
पर्यायार्थिक। (प्रव.ज्ञे.१९) -मूढ वि [मूढ] पर्यायमूद, पर्याय में
मुग्ध । -विजुद वि [वियुक्त ] पर्याय रहित । ( पंचा. १२)
पज्जयविजुदं दव्वं ।
पज्जत्त न [पर्याप्त] कर्म विशेष, नाम कर्म का एक भेद, जिसके
उदय से जीव छहों पर्याप्तियों से युक्त होता है। (स.६७)
पज्जत्ति स्त्री [पर्याप्ति] पर्याप्ति, कर्मविशेष । (बो.३३,३६)
आहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छवास, भाषा और मन, ये छह
पर्याप्तियां हैं।
पज्जल अक [प्र + ज्वल्] जलना, दग्ध होना । ( भा. १२२ )
पज्जाअ / पज्जाय पुं [पर्याय] पर्याय, परिणमन, पदार्थस्वभाव ।
( पंचा. ११) देव की उत्पत्ति एवं मनुष्य का मरण होना, यही
पर्याय-परिणमन है। (पंचा. १८) प्रवचनसार में इसी बात को
इस तरह कहा गया है ---उप्पादो य विणासो, विज्जदि सव्वस्स
अत्यजादस्स । पज्जाएण दु केण वि, अत्थो खलु होदि सब्भूदो ।
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