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(चा. २८) - संजद वि [ संयत] पंचेन्द्रिय विजयी, पांच इन्द्रियों पर
विजय प्राप्त करने वाला । (बो. २५) - संवुड वि [संवृत] पांच
इन्द्रियों को रोकने वाला । (प्रव.चा. ४० )
 
पंडु पुं [पाण्डु] पाण्डु, पाण्डव। -सुअ पुं [सुत] पाण्डुसुत,
पाण्डवपुत्र – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन । (नि.भ.७)
 
पंथ पुं [पन्थन्] मार्ग, पथ, रास्ता । पंथे मुस्संतं । (स.५८)
पंथिय पुं [पन्थिक] पथिक, राहगीर। (भा. ६)
 
पुंवेद पुं [पुंवेद] पुंलिङ्ग। (सि.भ.६)
 
पकुव्ब सक [प्र+कृ] करना। उप्पादवए पकुव्वंति। (पंचा.१५, ४४)
पक्क वि [पक्व] पका हुआ, परिपक्व । ( स. १६८) पक्के फलम्हि
पडिए ।
 
पक्ख पुं [पक्ष] 1. तर्कशास्त्र में प्रसिद्ध अनुमान प्रमाण का एक
अवयव, नंय पक्ष। (स.१४२) अतिक्कंत वि [अतिक्रान्त] पक्ष से
अतिक्रान्त, पक्ष से दूरवर्ती। (स. १४२) पक्खातिक्कंतो पुण। 2.
पंख । 3. पक्ष, पन्द्रह दिन का एक पक्ष होता है। (पंचा. २५)
-खवण न [क्षपण] पक्षोपवास, व्रत विशेष । (यो.भ.अं.)
पक्ख सक [प्र+वद्] कहना । (निय. ५४)
 
पक्खीण वि [प्रक्षीण] अत्यन्त क्षीण, सर्वथा नष्ट, अतीन्द्रिय
घातियां कर्मों से रहित । पक्खीणघादिकम्मो । (प्रव. १९)
 
पगद वि [प्रकृत] प्रस्तुत, अधिकृत, उत्तमवस्तु । ( प्रव.चा. ६१ )
दिट्ठा पगदं वत्युं ।
 
पगरण न [प्रकरण] अधिकार प्रासंगिक, प्रासंगिक कार्य ।
 
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