2023-06-14 00:25:16 by suhasm
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पुद्गल को गति करते हुए में सहायक है। रस, वर्ण, गन्ध, शब्द
एवं स्पर्शरहित, समस्त लोक में व्याप्त, अखण्डप्रदेशी, परस्पर
व्यवधान रहित, विस्तृत और असंख्यातप्रदेशी है। स्वयं गति क्रिया
से युक्त जीव एवं पुद्गलों को गति करने में जो सहकारी होता है,
किन्तु स्वयं निष्क्रिय ही है। जिस प्रकार लोक में जल मछलियों के
गमन करने में अनुग्रह करता है उसी तरह धर्मद्रव्य जीव और
पुद्गल द्रव्य के गमन में अनुग्रह करता है। (पंचा.८४, ८५)
- अत्थिकाय पुं [अस्तिकाय ] धर्मास्तिकाय । (पंचा. ८३, प्रव.ज्ञे
२६, निय. १८३) -च्छि पुं [अस्ति] धर्मास्तिकाय ।
(स.ज.वृ. २११) - दव्व पुंन [द्रव्य] धर्मद्रव्य । (प्रव.ज्ञे. ४१ )
3. पुं [ धर्म] धर्मनाथ, पंद्रहवें तीर्थङ्कर का नाम । (ती.भ.४)
धम्मिग वि [धार्मिक ] धर्मतत्पर, धर्मपरायण धर्मवत्सल ।
( प्रव.चा. ५९) समभावो धम्मिगेसु सव्वेसु ।
घर सक [धृ] धारण करना । धरइ (व.प्र.ए. निय. ११६) धरहि
(वि./आ.म.ए.भा. ८०) धरवि (अप.सं.कृ.मो.४४) तिहि तिण्णि
धरवि णिच्वं। धरेह (वि. / आ.म.ए.भा. १४६, द. २१) धरु
(वि./ आ.म.ए. निय. १४०) धरिदुं (हे. कृ. पंचा. १६८, निय. १०६,
द्वा. ८०) धरिदुं जस्स ण सक्कं । ( पंचा. १६८)
धर वि [धर] धारण करने वाला। (भा. १४४)
धरा स्त्री [धरा] पृथिवी, भूमि । (निय. २१)
धरिय वि [धरित] धारण किए हुए, पकड़े हुए। (पं.भ. १)
धवल वि [धवल ] सफेद, श्वेत, सित। गोखीरसंखधवलं । (बो. ३७)
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पुद्गल को गति करते हुए में सहायक है। रस, वर्ण, गन्ध, शब्द
एवं स्पर्शरहित, समस्त लोक में व्याप्त, अखण्डप्रदेशी, परस्पर
व्यवधान रहित, विस्तृत और असंख्यातप्रदेशी है। स्वयं गति क्रिया
से युक्त जीव एवं पुद्गलों को गति करने में जो सहकारी होता है,
किन्तु स्वयं निष्क्रिय ही है। जिस प्रकार लोक में जल मछलियों के
गमन करने में अनुग्रह करता है उसी तरह धर्मद्रव्य जीव और
पुद्गल द्रव्य के गमन में अनुग्रह करता है। (पंचा.८४, ८५)
- अत्थिकाय पुं [अस्तिकाय ] धर्मास्तिकाय । (पंचा. ८३, प्रव.ज्ञे
२६, निय. १८३) -च्छि पुं [अस्ति] धर्मास्तिकाय ।
(स.ज.वृ. २११) - दव्व पुंन [द्रव्य] धर्मद्रव्य । (प्रव.ज्ञे. ४१ )
3. पुं [ धर्म] धर्मनाथ, पंद्रहवें तीर्थङ्कर का नाम । (ती.भ.४)
धम्मिग वि [धार्मिक ] धर्मतत्पर, धर्मपरायण धर्मवत्सल ।
( प्रव.चा. ५९) समभावो धम्मिगेसु सव्वेसु ।
घर सक [धृ] धारण करना । धरइ (व.प्र.ए. निय. ११६) धरहि
(वि./आ.म.ए.भा. ८०) धरवि (अप.सं.कृ.मो.४४) तिहि तिण्णि
धरवि णिच्वं। धरेह (वि. / आ.म.ए.भा. १४६, द. २१) धरु
(वि./ आ.म.ए. निय. १४०) धरिदुं (हे. कृ. पंचा. १६८, निय. १०६,
द्वा. ८०) धरिदुं जस्स ण सक्कं । ( पंचा. १६८)
धर वि [धर] धारण करने वाला। (भा. १४४)
धरा स्त्री [धरा] पृथिवी, भूमि । (निय. २१)
धरिय वि [धरित] धारण किए हुए, पकड़े हुए। (पं.भ. १)
धवल वि [धवल ] सफेद, श्वेत, सित। गोखीरसंखधवलं । (बो. ३७)