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धणुह पुंन [धनुष्] धनुष, चाप (बो. २२)
घण्णन [धान्य] 1. धान, अनाज । (बो. ४५, द्वा. ३१) २. वि [ धन्य ]
भाग्यशाली, भाग्यवान्, प्रशंसनीय । ते धण्णा ताण णमो ।
(भा. १२८ )
 
धम्म पुं न [धर्म] 1.धर्म, शुभाचरण, शुभप्रवृत्ति । आत्मा की निर्मल
परिणति का नाम धर्म है। धर्म समता है, जो राग, द्वेष और मोह
से रहित है। (प्रव. ६, ७) धर्मरूप परिणत आत्मा धर्म है।
धम्मपरिणदो आदा धम्मो । (प्रव. ८) दर्शनपाहुड में दर्शन धर्म का
मूल कहा गया है। (द.२) बोधपाहुड में धम्मो दयाविसुद्धो कहा
गया है। इसका अभिप्राय यह है कि, प्राणीमात्र के प्रति समभाव,
प्राणीमात्र को आत्मवत् समझना, करुणाधर्म है । ( बो. २४)
मोक्षपाहुड में प्रवचनसार की तरह चारित्र को धर्म कहा गया है,
वह धर्म आत्मा का समभाव है और यह समभाव जीव का अभिन्न
परिणाम है । ( मो. ५० ) - उवदेस पुं [उपदेश] धर्म उपदेश,
सिद्धान्तबोध, आत्मज्ञान । (प्रव. ४४ ) - उवदेसि वि [उपदेशिक]
धर्मोपदेशिक। (चा.भ.१ ) - कहा स्त्री [कथा] धर्मकथा ।
(श्रु.भ.अं.) -ज्झाण न [ध्यान] धर्मध्यान। (निय. १२३, मो.७६)
-णिम्ममत्त वि [निर्ममत्व ] धर्म से निर्ममत्व । (स. ३७) - परिणद
वि [परिणत] धर्म परिणत । ( प्रव. ८) - संग पुं न [सङ्ग].
धर्मसम्बन्ध । ( स. ज. वृ. १२५) - संपत्ति स्त्री [सम्पत्ति] धर्मरूपी
सम्पत्ति, धर्मवैभव । - सील न [शील ] धर्मशील,
धार्मिक । (द.९)2.पुं न [धर्म] एक अरूपीपदार्थ, जो जीव एवं
 
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