2023-06-14 00:24:25 by suhasm
This page has not been fully proofread.
.
.
182
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir.
[युक्त ] दमनयुक्त, इन्द्रियनिग्रह से युक्त। (बो.५१)
दया स्त्री [दया] करुणा, दया, अनुकम्पा । (बो.२४, भा.१३२) कुरु
दयपरिहरमुणिवर। यहां दय शब्द द्वितीया एकवचन में है।
-विसुद्ध वि [विशुद्ध] दया से विशुद्ध, दया से निर्मल धम्मो दया
विसुद्धो। (बो. २४)
दव सक [द्रव] प्राप्त होना । (पंचा. ९) दवियदि (व.प्र.ए.)
दविण पुंन [ द्रविण] धन, पैसा, वैभव, सम्पत्ति । ( प्रव.ज्ञे. १०१)
देहा वा दविणा वा ।
दवियन [ द्रव्य ] द्रव्य । जो भाव वस्तु के अपने-अपने गुण-
पर्यायरूप
स्वभाव को प्राप्त होता है तथा एक रूप में ही व्याप्त होता है, वह
द्रव्य है । ( पंचा. ९) द्रव्य के तीन लक्षण दिये गये हैं-दव्वं
सल्लक्खणियं (सत्लक्षण ) । उप्पादव्वयध्रुवत्तसंजुत्तं ( उत्पाद,
व्यय और ध्रौव्ययुक्त) । गुणपज्जायसयं (गुण और पर्यायस्वरूप ) ।
(पंचा. १०) समयसार में कहा है-जैसे सोना अपने कंगन आदि
पर्याय से अभिन्न / एक रूप है वैसे ही द्रव्य अपने गुणों से तथा
पर्यायों से अभिन्न है। (स. ३०८ ) -भाव पुं [ भाव] द्रव्यभाव ।
(पंचा. ६)
दव्ब न [द्रव्य] द्रव्य । ( पंचा. ८५, स. १०८, प्रव ३६, निय. २६,
बो. २७, भा. ३३, चा. १८) -उवभोग पुं [उपभोग] द्रव्य कर्म के
उपभोग। (स.१९६) -कालसंभूद वि [कालसंभूत] द्रव्यकाल से
उत्पन्न। ( पंचा. १०० ) -जादि स्त्री [जाति ]
-द्विअ वि [आर्थिक] द्रव्यार्थिकनय
(प्रव. ३७)
For Private and Personal Use Only
द्रव्यसमूह ।
विशेष ।
.
182
[युक्त ] दमनयुक्त, इन्द्रियनिग्रह से युक्त। (बो.५१)
दया स्त्री [दया] करुणा, दया, अनुकम्पा । (बो.२४, भा.१३२) कुरु
दयपरिहरमुणिवर। यहां दय शब्द द्वितीया एकवचन में है।
-विसुद्ध वि [विशुद्ध] दया से विशुद्ध, दया से निर्मल धम्मो दया
विसुद्धो। (बो. २४)
दव सक [द्रव] प्राप्त होना । (पंचा. ९) दवियदि (व.प्र.ए.)
दविण पुंन [ द्रविण] धन, पैसा, वैभव, सम्पत्ति । ( प्रव.ज्ञे. १०१)
देहा वा दविणा वा ।
दवियन [ द्रव्य ] द्रव्य । जो भाव वस्तु के अपने-अपने गुण-
पर्यायरूप
स्वभाव को प्राप्त होता है तथा एक रूप में ही व्याप्त होता है, वह
द्रव्य है । ( पंचा. ९) द्रव्य के तीन लक्षण दिये गये हैं-दव्वं
सल्लक्खणियं (सत्लक्षण ) । उप्पादव्वयध्रुवत्तसंजुत्तं ( उत्पाद,
व्यय और ध्रौव्ययुक्त) । गुणपज्जायसयं (गुण और पर्यायस्वरूप ) ।
(पंचा. १०) समयसार में कहा है-जैसे सोना अपने कंगन आदि
पर्याय से अभिन्न / एक रूप है वैसे ही द्रव्य अपने गुणों से तथा
पर्यायों से अभिन्न है। (स. ३०८ ) -भाव पुं [ भाव] द्रव्यभाव ।
(पंचा. ६)
दव्ब न [द्रव्य] द्रव्य । ( पंचा. ८५, स. १०८, प्रव ३६, निय. २६,
बो. २७, भा. ३३, चा. १८) -उवभोग पुं [उपभोग] द्रव्य कर्म के
उपभोग। (स.१९६) -कालसंभूद वि [कालसंभूत] द्रव्यकाल से
उत्पन्न। ( पंचा. १०० ) -जादि स्त्री [जाति ]
-द्विअ वि [आर्थिक] द्रव्यार्थिकनय
(प्रव. ३७)
For Private and Personal Use Only
द्रव्यसमूह ।
विशेष ।