2023-06-17 11:45:28 by jayusudindra

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णिक्कसायस्स दंतस्स, सूरस्स ववसायिणो ।
 
(निय. १०५)
णिक्कसायस्स दंतस्स, सूरस्स ववसायिणो ।
(निय. १०५)
 

 
दंति
पुं [दन्तिन्] हस्ति, हाथी । (निय ७३ ) पंचिंदियदंतिप्पणि-

द्दलणा।
 
दंस

 
दंस
सक [दर्शय्] दिखलाना, बतलाना। दंसेइ मोक्खमग्गं ।

(बो. १३)
 
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दंसण
पुं न [दर्शन] 1. तत्त्व श्रद्धा, तत्त्वावलोकन, तत्त्वरुचि । 2.

देखना, पहिचाना, पदार्थ का सामान्यावलोक। 3. जिनलिङ्ग,

जिनमुद्रा । 4. रत्नत्रय । आचार्य कुन्दकुन्द ने दंसण शब्द का प्रयोग

अपने सभी ग्रन्थों में किया है, किन्तु दर्शनपाहुड और बोधपाहुड

में यह विशेष पारिभाषिक शब्द के रूप में प्रयुक्त हुआ है जो

सम्यक्त्वरूप, संयमरूप, उत्तमधर्मरूप, निर्ग्रन्थरूप एवं ज्ञानमय

मोक्षमार्ग को दिखलाता है, वह दर्शन है। दंसेइ मोक्खमग्गं,

सम्मत्तं संजमं सुधम्मं च । णिग्गंथं णाणमयं, जिणमग्गे दंसणं

भणियं । (बो. १३) जो अन्तरङ्ग और बहिरङ्ग---दोनों प्रकार के

परिग्रह को छोड़, मन-वचन-काय से संयम में स्थित हो, ज्ञान से

एवं कृत-कारित अनुमोदना से शुद्ध रहता है तथा खड़े होकर

भोजन करता है वह दर्शन है। दुविहंपि गंथचायं, तीसुवि जोगेसु

संजमं ठादि । णाणम्मि करणसुद्धे, उब्भसणे दंसणं होई ॥ (द.१४)

दर्शनपाहुड में ऐसा दर्शन ही धर्म का मूल प्रधान कहा गया

है। दंसणमूलो धम्मो। (द. २) जिस प्रकार वृक्ष, जड़ से शाखा आदि

जड़

परिवार से युक्त कई गुणा स्कन्ध
 
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