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[रोहण] वृक्ष पर आरोहण, वृक्ष पर चढ़ना । ( भा. २६) - हिट्ठ स्त्री
[अधस्] वृक्ष के नीचे। (बो.४१)
 
तरुण वि. [तरुण] युवक, जवान, तरुण । (स.७९)
तरुणी स्त्री [तरुणी] युवती, जवानस्त्री। (स. १७४)
तल पुं न [तल] तमालवृक्ष, ताड़ का पेड़। (स.२३८)
तव पुं न [तपस्] तप, तपस्या, तपश्चर्या । (पंचा. १७०, स. १५२,
प्रव. १४, निय. ५५, द.२८) विषय और कषाय के विनिग्रह को
करके ध्यान एवं स्वाध्याय द्वारा आत्मा का चिंतन किया जाता है,
वह तप है। विसयकसायविणिग्गहभावं, काऊण झाणसज्झाए ।
जो भावइ अप्पाणं, तस्स तवं होदि णियमेण ॥ (द्वा. ७७) तप से
सभी स्वर्ग प्राप्त होते हैं। सग्गं तवेण सव्वो वि । (मो. २३) तप के
बाह्य और अभ्यन्तर ये भेद किये गये हैं। इनके भी छह-छह भेद
होते हैं। - गुणजुत्त वि [गुणयुक्त ] तपगुण से युक्त (शी. ८)
-चरण/यरण न [चरण] तपश्चरण, तपश्चर्या । (निय.५५, ११८)
तपश्चरण से अनन्तानन्त भवों के द्वारा उपार्जित शुभ-अशुभ
कर्मसमूह नष्ट हो जाते हैं। (निय. ११८) - सामण्ण पुं [ श्रामण्य ]
तपस्वी श्रमण । वंदमि तवसामण्णा । (द. २८) तवेर्हि (तृ. ब. स.
१४४) तवसा (तृ.ए. प्रव.चा. २८) तवंहि (स.ए. पंचा. १६०)
तबोकम्म पुं न [तपःकर्म] तपःकर्म, छह आवश्यक कर्मों में एक
में
भेद। (पंचा. १७२) जो कुणदि तवोकम्मं ।
 
तवोधण पुं न [तपोधन] तपरूपी धन । जिणवयणगहिदसारा,
विसयविरत्ता तवोधणा धीरा । (शी. ३८)
 
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