2023-06-17 11:24:40 by jayusudindra
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क्रि वि [तत्काल] उसी समय । तक्कालं तम्मयत्ति पण्णत्तं ।
( प्रव. ८)
तक्कालिय
वि [ तात्कालिक] उसी समय सम्बन्धी, वर्तमान, भूत
एवं भविष्यत् संबंधी । जं तक्कालियमिदरं । (प्रव.४७ )
तच्च
न [तत्त्व] सार, तत्त्व परमार्थ, यथार्थस्वरूप । केवलिगुणे
थुणदि, जो सो तच्चं केवलिं थुणदि। (स. २९) -ग्गहण न [ग्रहण]
तत्त्वग्रहण । -तण्डु वि [तज्ञ] वस्तु स्वरूप को जानने वाला ।
(पंचा.४७, प्रव. ज्ञे. १०५ ) - रुइ स्त्री [रुचि ] तत्त्वरुचि । तच्चरुई
सम्मत्तं । (मो. ३८)
तण
तण
न [ तृण] घास, तृण । (बो ४६ )
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तणू
स्त्री [तनु] शरीर, काया । उसग्ग पुं [उत्सर्ग] शरीर त्याग,
कायोत्सर्ग । निरन्तर आत्मा में लीन हो, शरीर सम्बंधी क्रियाओं
से रहित होकर, वचन और मन के विकल्पों को रोकना
कायोत्सर्ग है। (निय.१२१) तणू+उसग्ग में प्राकृत व्याकरण की
दृष्टि से स्वर से आगे स्वर होने पर शब्द के स्वर अर्थात् प्रारम्भ के
शब्द के स्वर का लोप हो जाता है। (हे. लुक् १/१०) - उत्सर्ग का
उस्सग्ग प्राकृत रूप व्याकरण की दृष्टि से बनना चाहिए, परन्तु
छन्द भङ्ग न हो, इसलिए ऐसा प्रयोग हुआ।
तण्हा
स्त्री [तृष्णा] प्यास, पिपासा, बावीस परीषहों में एक भेद ।
तण्हाए (तृ.ए.प्रव.चा.५२) तण्हाहिं (तृ. ब. प्रव.७५)
तत्तो
अ [ततः] उससे, उस कारण से । तत्तो अमिओ अलोओ खं।
(पंचा. ३)
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