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णिसेज्जा स्त्री [निषद्या] आसीन होना, बैठना, समवसरण में
आसीन होना । ( प्रव.४४ )
 
णिस्संक वि [निःशङ्क] शङ्का रहित । ( स. २२९)
 
णिस्संकिय वि [निःशङ्कित] शङ्कारहित, सम्यक्त्व का एक गुण ।
(चा. ७)
 
णिस्संग वि [निःसङ्ग] 1. सङ्गरहित, बाह्य एवं आभ्यन्तर दोनों
प्रकार के परिग्रह या सङ्गति से रहित । मोक्षाभिलाषी निष्परिग्रह
और ममत्व रहित होकर परमात्मस्वरूप में लीन होता है ।
(पंचा.१६९, बो.४८) 2. कषायादि से रहित । तं णिस्संगं साहु ।
(स.ज.वृ. १२५)
 
णिस्संसय वि [नि:संशय ] नि:संदेह, संशयरहित । ( स. ३२६)
णिस्सल्ल वि [निःशल्य ] शल्यरहित, जन्ममरण से रहित ।
(निय ४४)
 
जिस्सेस वि [नि:शेष ] समस्त, सम्पूर्ण - दोसरहिअ वि [दोषरहित]
समस्त दोषों से रहित, सिद्ध, मुक्त । (निय ७)
 
णिहण सक [नि+हन्] मारना, घात करना । नष्ट करना ।
(प्रव. ८८) णिहणदि (व.प्र.ए. प्रव.८८) ।
 
णिहद वि [निहत] घात करने वाला, मारने वाला । ( प्रव. ९२ )
- घणघादिकम्म पुं न [घनघातिकर्म] घातियां कर्मों को क्षय करने
वाला । (प्रव. ज्ञे. १०५) - मोह पुं [मोह] मोह का नाश करने
वाला। (पंचा. १०४)
 
णिहार पुं [निहार] निर्गम, शौच, उच्चार । आहारणिहारवज्जियं ।
 
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