2023-06-14 00:20:53 by suhasm
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-आवरण न [आवरण] कई प्रकार के आवरण, ज्ञान के आवरण ।
( पंचा. २०, स. १६५, प्रव.चा. ५७ ) -कम्म पुं न [कर्मन्] नाना
कर्म, अनेक प्रकार के कर्म । (निय. १५६) गुण पुंन [गुण] अनेक
गुण । णाणागुणपज्जएण संजुत्तं । (निय. १६८) - जीव पुं [जीव]
अनेक जीव । (निय. १५६ ) - भूमि स्त्री [भूमि ] अनेक प्रकार की
भूमि । (प्रव. चा. ५५) -विह वि [विध] अनेक प्रकार । णाणाविहं
हवे लद्धी । (निय. १५६ )
णाणी वि [ज्ञानिन्] ज्ञानी, विशेषज्ञानी, केवलज्ञानी । (पंचा. ४८,
स. १७०, प्रव. २८) णाणी (प्र. ए. प्रव. २९) णाणी णाणसहावो ।
( प्रव. २९) णाणीहि (तृ. ब. पंचा. ४३) णाणिस्स (च. / ष.ए.
प्रव. २८, स. १८०, निय. १७३, पंचा. १५०) -त्त वि [त्व]
ज्ञानीपन । ण जहदि णाणी उणाणित्तं । (स.१८४)
णाणिण वि [ज्ञानिन्] ज्ञानी । धणिणं जह णाणिणं च दुविधेहिं ।
(पंचा.४७) धणिण का प्रयोग धनी के लिए एवं णाणिण का प्रयोग
ज्ञानी के लिए हुआ है। यद्यपि नियमानुसार अन्त्य व्यञ्जन का
लोप होकर णाणि रूप के प्रयोग की बहुलता है, परन्तु यह प्रयोग
अन्त्य व्यञ्जन के लोप की प्रक्रिया से परे अन्त्यव्यन्जन में अका
आगम होकर बना है। आत्मन् के अप्पण की तरह ज्ञानिन् का
णाणिण शब्द बना है।
णाद सक [ज्ञा / ज्ञात] जानना । (स. ज. वृ. १८९) पस्सिदूण णादेदि।
णाद वि [ज्ञात] विदित, जाना हुआ। ( स. ६, प्रव ५८ )
णाम अ [नाम] 1. संभावना बोधक अव्यय । जह णाम को वि
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