2023-06-14 00:23:38 by suhasm
This page has not been fully proofread.
.
www.kobatirth.org.
142
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पञ्चमकाल में मुनि के धर्मध्यान होता है, यह धर्मध्यान
आत्मस्वभाव में स्थित साधु के होता है। भरहे दुस्समकाले,
धम्मज्झाणं हवेइ साहुस्स। तं अप्पसहावठिदे, ण हु मण्णइ सो वि
अण्णाणी । आज भी त्रिरत्न से शुद्ध आत्मा का ध्यान करके मनुष्य
इन्द्र और लौकान्तिक देव के पद को प्राप्त होते हैं, वहां से च्युत
होकर मनुष्य जन्म पाकर निर्वाण को प्राप्त होते हैं। (मो. ७७)
-त्य वि [स्थ] ध्यानस्थ, ध्यान में लीन । अप्पा झाएइ झाणत्थो ।
(मो. २७) -जुत्त वि [युक्त ] ध्यान में लीन । सज्झायझाणजुत्ता।
(बो.४३) - जोअ पुं [योग] ध्यान योग, ध्यान की चेष्टा, सग्गं तवेण
सव्वो, वि पावए तहि वि झाणजोएण । ( मो. २३) -णिलीण वि
[निलीन] ध्यान में तल्लीन, ध्यानमग्न । झाणणिलीणो साहू ।
(निय ९३ ) - पंईव पुं [प्रदीप] ध्यानरूपी दीपक, ध्यानमय ज्योति ।
झाणपईवो वि पज्जलइ । ( भा. १२२) मअ / मय वि [मय ]
ध्यानयुक्त, ध्यान स्वरूपी । (पंचा. १४६, निय. १५४) -रअ / रय
वि [रत ] ध्यान में लीन, ध्यान में तत्पर । जो देव और गुरु का
भक्त, साधर्मी और संयमी जीवों का अनुरागी तथा सम्यक्त्व को
धारण करता है, वह ध्यानरत कहलाता है। देवगुरुम्मि य भत्तो,
साहम्मि य संजदेसु अणुरत्तो । सम्मत्तमुव्वहंतो, झाणरओ होइ
जोई सो॥ (मो.५२,८२) -विहीण वि [विहीन] ध्यान रहित,
ध्यान से च्युत । झाणविहीणो समणो। (निय. १५१)
झादा वि [ध्याता] ध्यान करने वाला, ध्याता। जो ध्यान में अपने
शुद्ध आत्मा का चिंतन करता है वह ध्याता है । इदि जो झायदि
For Private and Personal Use Only
142
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
पञ्चमकाल में मुनि के धर्मध्यान होता है, यह धर्मध्यान
आत्मस्वभाव में स्थित साधु के होता है। भरहे दुस्समकाले,
धम्मज्झाणं हवेइ साहुस्स। तं अप्पसहावठिदे, ण हु मण्णइ सो वि
अण्णाणी । आज भी त्रिरत्न से शुद्ध आत्मा का ध्यान करके मनुष्य
इन्द्र और लौकान्तिक देव के पद को प्राप्त होते हैं, वहां से च्युत
होकर मनुष्य जन्म पाकर निर्वाण को प्राप्त होते हैं। (मो. ७७)
-त्य वि [स्थ] ध्यानस्थ, ध्यान में लीन । अप्पा झाएइ झाणत्थो ।
(मो. २७) -जुत्त वि [युक्त ] ध्यान में लीन । सज्झायझाणजुत्ता।
(बो.४३) - जोअ पुं [योग] ध्यान योग, ध्यान की चेष्टा, सग्गं तवेण
सव्वो, वि पावए तहि वि झाणजोएण । ( मो. २३) -णिलीण वि
[निलीन] ध्यान में तल्लीन, ध्यानमग्न । झाणणिलीणो साहू ।
(निय ९३ ) - पंईव पुं [प्रदीप] ध्यानरूपी दीपक, ध्यानमय ज्योति ।
झाणपईवो वि पज्जलइ । ( भा. १२२) मअ / मय वि [मय ]
ध्यानयुक्त, ध्यान स्वरूपी । (पंचा. १४६, निय. १५४) -रअ / रय
वि [रत ] ध्यान में लीन, ध्यान में तत्पर । जो देव और गुरु का
भक्त, साधर्मी और संयमी जीवों का अनुरागी तथा सम्यक्त्व को
धारण करता है, वह ध्यानरत कहलाता है। देवगुरुम्मि य भत्तो,
साहम्मि य संजदेसु अणुरत्तो । सम्मत्तमुव्वहंतो, झाणरओ होइ
जोई सो॥ (मो.५२,८२) -विहीण वि [विहीन] ध्यान रहित,
ध्यान से च्युत । झाणविहीणो समणो। (निय. १५१)
झादा वि [ध्याता] ध्यान करने वाला, ध्याता। जो ध्यान में अपने
शुद्ध आत्मा का चिंतन करता है वह ध्याता है । इदि जो झायदि
For Private and Personal Use Only