2023-06-14 00:20:52 by suhasm
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खअ पुं [क्षय] विनाश, कर्मनाश, कर्म का अभाव । ( पंचा. ५८ )
-उवसमिय पुं [औपशमिक] क्षय और उपशम, कर्मों का नाश एवं
उपशम,
क्षायोपशमिक अवस्था विशेष । खइयं खओवसिमियं,
तम्हा भावं तु कम्मकदं । ( पंचा. ५८) खएण ( तृ.ए.पंचा.५६,
निय. १७५)
खइअ / खड्ग / खइय पुं [क्षायिक ] क्षय, विनाश, कर्मों के नाश से
उत्पन्न भाव। (पंचा.५८) णो खइयभावठाणा । (निय.४१) - भाव
पुं [भाव ] क्षायिकभाव । (निय ४१ ) णो खड़यभावठाणा।
(निय ४१)
खं सक [ख्या] कहना । खंति (चा. ३७) खंति जिणा पंचसमिदीओ।
(चा. ३७)
खंड पुं न [खण्ड] टुकड़ा, हिस्सा, भाग । (शी. २५) वट्टेषु य खंडेसु ।
(शी. २५)
खंड सक [खण्ड्य] तोड़ना, खण्डित करना, विच्छेद करना । सस्सं
खंडेदि तह य वसुहं पि। (लिं. १६) -दूसयर वि [दूष्यकर] खण्डित
करने एवं दोष लगाने वाला । (मो.५६)
खंध पुं [स्कन्ध] स्कन्ध, पुद्गलपिण्ड । ( पंचा. ९८, प्रव. ज्ञे.७५,
निय. २०) सव्वेसिं खंधाणं । (पंचा.७७) पुद्गल द्रव्य के चार भेद
कहे गये हैं-स्कन्ध, स्कन्धदेश, स्कन्धप्रदेश और परमाणु । खंघा य
खंधदेसा, खंधपदेसा य होति परमाणू। (पंचा.७४) परमाणुओं से
मिलकर बने हुए पिण्ड को स्कन्ध कहते हैं। खंधं सयलसमत्धं ।
(पंचा.७५) खंधा हु छप्पयारा । (निय. २०) स्कन्ध के छह भेद
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