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आसक्ति, कुशीलसंपर्क। कुसीलसंगं ण कुणदि विकहाओ ।
(बो.५६) - संसग्ग पुंन [ संसर्ग] कुशील सम्बन्ध । ( स. १४७)
कुसीलसंसग्गरायेण। (स.१४७)
केइ / केई अ [कोऽपि] कुछ भी, कोई भी । ( स. ६१, निय. १८५)
जीवस्स णत्थि केई। (स.५३) ण दु केई णिच्छयणयस्स। (स.५६)
केइं अ [किंचित्] कुछ भी। (निय.९७) परभावं णेव गेहए केइं।
(निय ९७ )
केणवि अ [केनापि] कोई भी, किसी के साथ वेरं मज्झं ण केणवि
(निय. १०४) मा वज्झेज्जं केण वि । ( स. ३०१ )
केरिस वि [कीदृश] कैसा, किस तरह का । (शी. ४० )
केवल वि [केवल] अद्वितीय, अनुपम, शुद्ध, ज्ञान, विशेष, अकेला
( स. ९, निय. ९६) जं केवलि त्ति णाणं । (प्रव. ६० ) -णाण न
[ज्ञान] केवलज्ञान, समस्त पदार्थों एवं उनके समस्त परिणमन
को युगपत् देखने वाला ज्ञान । विज्जदि केवलणाणं । (निय.१८१)
-णाणी वि [ज्ञानिन्] केवलज्ञानवाला, सर्वज्ञ । केवलणाणी जाणदि
पस्सदि णियमेण अप्पाणं । (निय. १५९, १७२) - दंसण न [दर्शन ]
केवलदर्शन, पूर्णबोध । (निय.९६) - दिट्ठि स्त्री [दृष्टि ] केवल दर्शन
। (निय.१८१) -भाव पुं [भाव ] केवलभाव, केवलज्ञानरूप भाव
(बो. ३९) -वीरिय पुं न [वीर्य] केवलशक्ति, केवलज्ञानरूपी
शक्ति। (निय. १८१) - सत्ति स्त्री [शक्ति] केवलज्ञानरूपी शक्ति
(निय.९६) -सोक्खन [सौख्य] केवलज्ञानरूपी सुख ।
(निय. १८१) केवलसोक्खं च केवलं विरियं । (निय. १८१)
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