2023-06-14 00:20:52 by suhasm
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भविष्यत् और वर्तमान के भेद रूप है। (निय. ३१) समय, निमेष,
काष्ठा, कला, नाड़ी, दिन, रात, मास, ऋतु, अयन और वर्ष यह सब
व्यवहार काल है। समयो णिमिसो कट्ठा, कला य णाडी तदो
दिवारत्ती। मासोदुअयणसंवच्छरो त्ति कालो परायत्तो ।
(पंचा. २५) अट्ठ पुं न [अर्थ] कालार्थ, काल विशेष, काल में
स्थित। (भा. ३५) परिणामणामकालठ्ठे । (भा. ३५ )
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कालायस न [कालायस] लोहे की बेड़ी । (स.१४६) सोवण्णियम्हि
णियलं, बंधदि कालायसं च जह पुरिसं। ( स. १४६)
कालिज्जय न [कालेय] यकृत, जिगर, हृदय का मांसपिण्ड, कलेजा।
(भा. ३९ )
कालिया स्त्री [कालिका ] मेघ समूह, बादल। रागादि कालिया तह
विभाओ। (स.ज.वृ.२१९)
कालुस्स न [ कालुष्य ] मलिनता, कलुषपन, कलुषता ।
कालुस्समोहसण्णा। (निय.६६)
कि सक [कृ] करना। किज्जदि किज्जइ ( स. ३३२, ३३४) किच्चा
(सं.कृ.निय ८३, प्रव. ४)
"
कि / किं स [किम्] कौन, क्या क्यों । ता किं करोमि तुमं ।
(स.२६७, भा. ५)
किंचि/किंचिवि अ [किञ्चित् / किञ्चिदपि] कुछ भी, कोई, थोड़ा ।
(स.३८, भा.१०३, पंचा. ५९) उप्पादेदि ण किंचिवि । (स.३१०)
जम्हा सत्थं ण याणए किंचि । ( स. ३९० )
किंणर पुं [किन्नर ] व्यन्तर देवों का एक समूह । (भा. १२९) किंणर-
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