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अमरचन्द्रयतिकृता-
अथ वादशिक्षा ।
 

 
वादेऽनुप्रासयुक्तोक्तिः स्वोत्कर्षः परगर्हणा ।

कुलशास्त्रादिसंप्रश्नः स्वशाखाध्ययनप्रथा ॥ ४४ ॥

 
अनुप्रासयुक्तोक्तिर्यथा-
[ प्रतानः १
-
 

 
जल्पामि कल्पामितश्रीर्ब्रूमो श्रभ्रूमोटनाश्रिताः ।

वदामि दामि भो जल्पिष्यामि श्यामितशात्रवः ॥

जल्पामोऽनल्पसम्बोधवादसादरनादभृत् ।
 

एवं शब्दाः सानुप्रासाश्चिन्त्या वादोक्तियुक्तये ॥

 
[ कियन्तोऽपि सानुप्रासाः शब्दा यथा-
-
 
सूरि भूरि पूरित सूरीणाम् दूरि कुरी क्रूरीकृतम् दम्भ जम्भ रम्भ लम्भ

भम्भ क्रूर तूर पूर सूर पुरण क्षोभ लोभ प्रेम स्थेम हेम क्षेम हेमया येमया

खेमहः ते महान्तः प्राज्ञ मान्य धान्य नान्य तान्यव्यवस्थापयन् भूप स्तूप धूप

यूप कूप रूप सूपकार भूम्याम् धूम्याम् अवन्याम् वन्याम् गुर्वी उर्वी उर्वीधर

क्षोणी श्रोणी शोणीकृत द्रोणी क्षमायाम् मायाम् छायाम् जायाम् सायान्धतमसम्

व्योम सोम रोम स्तोम कोमल लोम कोमया यो महान् उक्ति युक्ति भुक्ति

शुक्ति मुक्ति सोहम् मोहम् दोद्रोहम् दोहम् कोहङ्कार:रः दोह लौह दोहद सन्देह

सन्दोह दुग्ध मुग्ध स्निग्ध विदग्ध दात्र गात्र पात्र क्षात्र नात्र छात्र मात्र

शात्रव गोत्र स्तोत्र कोत्र षोत्र योत्र होत्र कुर्याम् माधुर्यम् चातुर्यम् तुर्यम् पुर्याम्

काव्यम् श्राव्यम् नाव्यम् क्रव्यम् वाद नाद माद साद सादर छाद शाद यादः पाद

अब्द शब्द ध्यान अध्यान ध्मान गान ज्ञान वान स्थान पान भाम मान यान घोष

जोष तोष दोष शोष पोष लोला कोला कोलाहल गोला होदोला तोलन लोलुप मन्द्र चन्द्र

तन्द्र चन्द्रमा:माः सान्द्र पद्र भद्र द्र वाचः काच प्राचलत् साच वाचि काचित् साचि

वाचाल वाचाट प्राचालीत् प्राणी वाणी बाणी पाणी कृत्या भारत्या क्षारत्यागम्

भाषा शाखा गावो नावो प्रस्ताव स्थावर दाव पावन भाव राव हाव सरस्वत्या

सत्यापितनत्या हत्या पत्या मत्या रत्या गीर्वाण गीर्वाबाण कविता भविता सविता

पविता रचिता पाता नैव दैव सैव धीर कीर क्षीर चीर जीरक तीर नीर वीर सीर हीर

कोटीर कुटीर वानीर महीरमण आरब्ध लब्ध स्तब्ध वर्ण कर्ण अर्ण वर्णक तर्णक अर्णक

पर्णक अर्णव स्वर्ण पण्डित खण्डित दण्डित मण्डित क्रुद्ध बुद्ध रुद्ध शुद्ध प्रबुद्ध युद्ध उद्धव

मालती भारती व्रतती कृती कवि गवि छवि पवि रवि रिक्त सिक्त विविक्त हुद्वेधा त्रेधा

वेधा मेधा मेधावी आतुर चतुर कोत्र क्षेत्र तेत्र क्षेत्र नेत्र येत्र क्षत्र क्षेत्रज क्षेत्रज्ञ धर्म

चर्म नर्म शर्म मर्म कर्म धर्म हर्म्य दक्ष कक्ष वक्ष यक्ष पक्ष रक्ष भक्ष कुशलव कल गल

दल पल उपल फल बहुल हल गेय जेय देय ज्ञेय धेय नेय पेय हेय मेय विषेय पारीण

प्रवीण धुरीण दर्प कर्पर खर्पर सर्पण दर्पण अर्पण सर्पण सर्प तर्प विन्द छद पद मद रद
 

गान तान स्थान दान मान पान खान रान कान भान सर्व गर्व खर्व पर्व चर्वण
 
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