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अमरचन्द्रयतिकृता-
[ प्रतानः ३-
शक पाद्य सम्मता ग्रामेय कुलीन रामा ललना अङ्गण उपमानेन विलास चर्या वल्लभा
दम्पती भोगिन्यौ स्वतन्त्रा मातुलानी श्यामा कात्यायनी वारवधू आर्त्तप संवेशन
दोहद आसन्नसत्वा कलल दास सोदर अवरज कनीयान् मातुला न
नन्दिनी हाली परीहास देवन उपमानी वीरमाता श्वशुर पितर त्राता बान्धव आयतन
खालक कुणप कबन्ध अवयव राशिक लाप भ्रमरक अलका भ्रमरा लक संयता सीमन्त
केशपाश काकपक्ष वेष्टन भावनीय अवलोकन निशामन द्योतन अयाङ्ग विकार नासिका
जीभा रसना कन्धरा अनामिका कामाङ्कुश तिलक रोमलता आरोह जघन वराङ्ग
जङ्गल पलल परिकर्म अङ्गराग संवर्त्तन कोलक नायिका तरल ललामक लज्जा कर्णपूर
कर्णिकाहारी अङ्गद वलय रसना सारसन कार्पास उच्चल जलार्द्र ललिम तलिमा यावक
कज्जल दीप पार्थिव त्रिशङ्कु
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एकार्थत्वेऽनुलोमप्रतिलोमशब्दा यथा
कालिकः तावता कारिका कोरको नयन अपलाप वर्त्तन नन्दन साध्वसा वरभैरव कलपुलक
कटक कण्टक नध्यान जाड्यजा नपुनः दैत्यदै: महेम आकर्णिक आ
योत्
सूरिसू दक्षद वाचवा लोहलो स्वेच्छास्वे तानेनेता गोप्यगो भीरभी पापा शय्याश बत
कैतव दम्भद साभ्यासा नार्दना कचकनवेन नव्येन लगुड कांक्षकां कामुका अर्हणा
वलीव केशके वरयारव उपताप
स्यदस्य सहास जनज जात्यजा गोत्रगो योन्वयो जननज कान्ताकाम् स्मितास्मि भावभा
हावा हेलाहे गौरीगौ मध्यम तरुणीरुत जनीज सूनुसू याजाया वनीजनीव दम्पतीप
योग्ययोः साध्वीसा यातिया द्वंद्वं दोहदो कललक योनयोः यामेया श्रद्धाश्र दास्यदा
रदसोदर बान्धवा गात्रगा देहदे भारमा हस्तह केशाङ्के भालेभा दंष्ट्रादं दन्तदं दंशदं न
खदन तालुता
जनुजः भूरिभूः नुततनु कनक
A
आकारः खङ्गाद्याकृतिस्तच्चित्रम् । यथा
श्लेषार्थोप
प्रतिलोमानुलोमस्थैः शब्दैश्चित्रसमुद्भवः ॥ १८५ ॥
श्लेषव्युत्पादनस्तबके स
रत्र चित्रस्तबके संगृहीतैरनुलोमशब्दैश्च सर्वाण्याकारचित्राणि संभवन्ति ।
सर्वेष्वाकार
ला
संयुक्तयोः सजातीयवर्णयोर्णनयोस्तथा ।
स्वरवर्जितमनयोर्विसर्गाभावभावयोः ॥ १८७ ॥