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अमरचन्द्रयतिकृता-
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का रता निजहावेन
नवेहाजनितारका ।
चारुमारपराधीन
 
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न धीरा परमा रुचा ॥
 
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[ प्रतानः ३-
हयपद इति चत्वारो वर्णाः, श्लोकेऽपि चत्वारः पादाः, ततो यथाक्रममेकैक-
पादं प्रत्येकैकवर्णो ज्ञेयः स्वरैरक्षरसंख्या ज्ञेया। अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ, इत्यष्ट
स्वराः । श्लोकपादे चाऽष्टवर्णाः । यथा - ह हा हि ही हु हु हे है, य या यि यी यु यू
ये यै, प पा पिपी पु पू पे पै, ददा दिदी दु दू दे दै, अयं श्लोकस्तुरगपदेन कृतो,
हद्यपीत्यादि ॥
 
तुरगपदबन्धः ।
 
पादगतप्रत्यागतम् ।
 
एवमधंगत प्रत्यागतादीनि ॥
 
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अनुलोमप्रतिलोमशब्दा यथा - [ दिवं दिवा दिवे नाकं देवा देवं देव नवदेवता
खेल खेलन दान वर वीभानु भानो द्योतन हँस हंसा हेलि दिन दिना यादीने विभा
भासः विकर्तन जगचक्षुः धामाकरं करे महातेजाः सदा लोक सदालोकः विनता कलङ्का
तारका तारया कालिनी राधा राधया हरि देव जीवा भार्गव कविना रादो वातापिना
कालो कालं शावं निशया तमा तमिस्रा याम माया मेया मतः पक्षि राका मास मासे
सहा माधव नभ तप कल्पान्त क्षय गगन बलाहका: सत्रामा शुनासीर जम्भा देव नन्दी
नन्दन वन मय यमराज राक्षसाः पलादो नलकूबर रस विभवेन शङ्करम् व्रती हर हरम्
पिनाकेपि पिनाकिनागङ्गा कपालिना मेना भैरवो हेरम्ब हेरम्बा विनायक नन्दी स्थविर
विधातापि वेधसा जनार्दन दामोदर सनातन वनमालिका विशुकैटभा वैनतेय कंसा कंसे
नन्दकरामा सहसान्वितः बलाबलं बला नालीका रमा रमया मदन पातालौक: भारती
वेदाः वेदना वेदैः वत वह लोक सार निन्दा शापा तुङ्गम् यन्त्र ताल रव तालाघना तोय.
घनयोः वशा वश कच्छपिका कोलम्बक तत मृदङ्ग रागरागौ इस हास हासि कार दरदा
अट्टहास अतिहास शोक कोश कोप उद्यम उद्योग अतिभी आन्तकम् कटकी कटकम् कम्पम्
कम्पा रोदना रणरण ककाम मेधा मोक्ष मद शयन संलये
शङ्का नवतमसम्मद सानन्दा
तत गर्व साहङ्कारं सहङ्कारा ममतामानेन स्मयेन साहमहमिका सम्भावनं सम्भावना
सम्भावनया कार्णव्य रुत दैन्यवती सव्यामा श्रमता मोदो सत्र सन्त्रा आवेश दम सभ्रमता