2023-04-12 04:24:43 by ambuda-bot
This page has not been fully proofread.
९६
अमरचन्द्रपतिकृता-
[ प्रतान: ३-
राय ईर्या अरयः ऐयरुः दिति अदिति उदन्त दन्त दन्ति दान्त दुत तदा तुन्द ददि आददति
दूत दूति उदात्त दत्त उदेति उदित ददातु ददाति ददते दत्ते तुदति तुदतु हव हाव बाहु बाहवि
बहु बहि: : वाहा हाव विवाह आहव आहाव अवहत् उवाह हविः बह्नो वही उशना: शनि
निशा अशनिः ईशान शनैः नाश अनिश शुना शूनः नाश ननाश कवि कम्बु बक कम्बो
अम्बिका केवा मन्द अमोद मुद्दा मोद मिमेदे दम मादाः सायम् सेयम् सोयम् असूया आय
अयसा यस्या अथास्यन् दोषा दोष जीव बीज वाजि जब अजीवत् अजीजवत् जिजीव
आयाम यम याम मयु मय अमेय आमय माया कुहु कुह माघ मेघ मोघ मघा शिशिर
शरत् शौरि शूर राशि शर सहस् सहसा सेहा हास हंस सोहम् सिंह साहस सेद्दे असइ
गगन गान नाग नग अनङ्ग काश आकाश कौशिक कुशिक केश कुश अङ्कुश शशक
शकम् शुक कोश अशोक शङ्का शक अनन्त नृत्त नीति नत नति तेन ततान तेने आनीत
तनु तनू नूतन नुन्न नेता नुति अश्र भर भार भीरु भूरि भरो रम्भा आरम्भ वियत्
वयस् वायु यव वायु युवन् अवयन् उवाय घन घनाघन कुकुल ककुभ कुम्भ भेक कुम्भी
अपाचि चम्पा चम्प अपचत अपीपचत चाप चम्पू पर पार पुर पूर पौर अपर अपार
अरोप पुरी उदीची उदञ्चत् जम्भ अभजत् अभति अभाजि भेजे भाज अम्भोज
भोज भुज पवि वापी अवपत् अपीपवत् उवाप पीवा अतिभी भूत भीति भित्ति भीता
भाषा अभाषि भूषा भिषक भीषा वचस् वाचा वचा वञ्च अवोचत् उवाच वीचि चञ्चु
वाच अगमत् गम आगम मागाः छन्दः आच्छाद उच्छेद अच्छित् धातुः धाता धौत
आधौत अधीते अधीत अधत्त धत्ते धत्तः कंस सेक कसा अकसन अकासि अङ्गज गज
जगौ काम मूक मोक किमु कामिनू कामुकवाणी वीणा वणिक वेणी बाण सती सीता
सुत सुत सित असित आसित सन्ति सन्तु सतत सन्तत सेतु सोता सात मेना मेनाक
मनाकू मान मुनि मौन नेमी नमि नौमि नुमः नामन् मेने मीन मनस् मानिनू जय
जाया जय जेय अजयत् जीयात् यज युयोज सेना सेनानी सूना आसन आसीन
आसन नासा गुहा गुह हिङ्गु गूह अगूह अगाहि चण्डी चण्ड उच्चण्ड चौड चल
अञ्चल अचल चेल चोल चञ्चल चलाचल चाचलि चूला चुला चुली चम्चा अलोच
अचलत अचालीत् चचाल भृङ्गी भृङ्ग भोग भग भाग भङ्ग भागी भोगी जड जाल
लाजा ] । एवमन्येऽपि ज्ञेयाः ॥
स्थानमुरःकण्ठादि, तच्चित्रम् । यथा-
नेताऽनन्तनतोऽनन्तः सोऽद्यालासीदिलातले ।
घृतासिदासितोत्तालदनुसूनुनुतः सदा ॥
दन्त्यस्थानः ।
प्राज्यसवोजितस्फूतिर्यो मर्यादयान्वितः ।
समुद्रवदमुद्रश्रीः सज्जो जयति सज्जिनः ॥ १ ॥
अकण्ठ्यः । एवमन्यत् । एते शब्दाः सुप्राप्यत्वान्न दर्शिताः ॥
गतिर्गत
प्रत्थागत्गोमूत्रिकातुरगंपदपादगतप्रत्यागताऽर्द्धगतसर्वतोभद्राऽर्थभ्रमादीति,
अमरचन्द्रपतिकृता-
[ प्रतान: ३-
राय ईर्या अरयः ऐयरुः दिति अदिति उदन्त दन्त दन्ति दान्त दुत तदा तुन्द ददि आददति
दूत दूति उदात्त दत्त उदेति उदित ददातु ददाति ददते दत्ते तुदति तुदतु हव हाव बाहु बाहवि
बहु बहि: : वाहा हाव विवाह आहव आहाव अवहत् उवाह हविः बह्नो वही उशना: शनि
निशा अशनिः ईशान शनैः नाश अनिश शुना शूनः नाश ननाश कवि कम्बु बक कम्बो
अम्बिका केवा मन्द अमोद मुद्दा मोद मिमेदे दम मादाः सायम् सेयम् सोयम् असूया आय
अयसा यस्या अथास्यन् दोषा दोष जीव बीज वाजि जब अजीवत् अजीजवत् जिजीव
आयाम यम याम मयु मय अमेय आमय माया कुहु कुह माघ मेघ मोघ मघा शिशिर
शरत् शौरि शूर राशि शर सहस् सहसा सेहा हास हंस सोहम् सिंह साहस सेद्दे असइ
गगन गान नाग नग अनङ्ग काश आकाश कौशिक कुशिक केश कुश अङ्कुश शशक
शकम् शुक कोश अशोक शङ्का शक अनन्त नृत्त नीति नत नति तेन ततान तेने आनीत
तनु तनू नूतन नुन्न नेता नुति अश्र भर भार भीरु भूरि भरो रम्भा आरम्भ वियत्
वयस् वायु यव वायु युवन् अवयन् उवाय घन घनाघन कुकुल ककुभ कुम्भ भेक कुम्भी
अपाचि चम्पा चम्प अपचत अपीपचत चाप चम्पू पर पार पुर पूर पौर अपर अपार
अरोप पुरी उदीची उदञ्चत् जम्भ अभजत् अभति अभाजि भेजे भाज अम्भोज
भोज भुज पवि वापी अवपत् अपीपवत् उवाप पीवा अतिभी भूत भीति भित्ति भीता
भाषा अभाषि भूषा भिषक भीषा वचस् वाचा वचा वञ्च अवोचत् उवाच वीचि चञ्चु
वाच अगमत् गम आगम मागाः छन्दः आच्छाद उच्छेद अच्छित् धातुः धाता धौत
आधौत अधीते अधीत अधत्त धत्ते धत्तः कंस सेक कसा अकसन अकासि अङ्गज गज
जगौ काम मूक मोक किमु कामिनू कामुकवाणी वीणा वणिक वेणी बाण सती सीता
सुत सुत सित असित आसित सन्ति सन्तु सतत सन्तत सेतु सोता सात मेना मेनाक
मनाकू मान मुनि मौन नेमी नमि नौमि नुमः नामन् मेने मीन मनस् मानिनू जय
जाया जय जेय अजयत् जीयात् यज युयोज सेना सेनानी सूना आसन आसीन
आसन नासा गुहा गुह हिङ्गु गूह अगूह अगाहि चण्डी चण्ड उच्चण्ड चौड चल
अञ्चल अचल चेल चोल चञ्चल चलाचल चाचलि चूला चुला चुली चम्चा अलोच
अचलत अचालीत् चचाल भृङ्गी भृङ्ग भोग भग भाग भङ्ग भागी भोगी जड जाल
लाजा ] । एवमन्येऽपि ज्ञेयाः ॥
स्थानमुरःकण्ठादि, तच्चित्रम् । यथा-
नेताऽनन्तनतोऽनन्तः सोऽद्यालासीदिलातले ।
घृतासिदासितोत्तालदनुसूनुनुतः सदा ॥
दन्त्यस्थानः ।
प्राज्यसवोजितस्फूतिर्यो मर्यादयान्वितः ।
समुद्रवदमुद्रश्रीः सज्जो जयति सज्जिनः ॥ १ ॥
अकण्ठ्यः । एवमन्यत् । एते शब्दाः सुप्राप्यत्वान्न दर्शिताः ॥
गतिर्गत
प्रत्थागत्गोमूत्रिकातुरगंपदपादगतप्रत्यागताऽर्द्धगतसर्वतोभद्राऽर्थभ्रमादीति,