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बही: कोटीरटीक: कुटिलकटुमतीन्
 
भूत्वा क्षेत्रे विशुद्धे द्विजगण निलये
 

 
मातर्फे मातरिश्वन् पितुरतुलगुरो
मूर्धन्येषोऽञ्जलिमै द्रुढ़तरमिह ते
 

 
याभ्यां शुश्रपुरासीः कुरुकुल जनने
येऽमुं भाव भजन्ते सुरमुखसुजनाराधित
 

 
बन्दे त्वं त्वा सुपूर्णप्रमतिमनुदिनाऽसे वितं
वन्देऽहं तं हनुमानिति महितमहापौरुषो
विष्णोरत्युत्तमत्वाद खिलगुणगणैः
 
श्रीमद्विष्ण्वं त्रिनिष्टातिगुणगुरुतम
 

 
संसारोत्ताप नित्योपशमद
सानुक्रोशैरजस्रं जनिमृतिनिरया धूर्म
साम्रोष्णा भी शुशुभ्रप्रभमभय
 
सुब्रह्मण्याख्य सूरेः सुत इति
 
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