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क्ष
 
क्षिप्तः पश्चात्सलीलं शतमतुलमते
क्षुरक्षामान् रुक्षरक्षोरदखरनखर
 
क्ष्वेलाक्षीणाट्टहास तव रणमरिहन्नुद्गदोद्दामबाहो....
 

 
गच्छन् सौगन्धिकार्थं पथि स हनुमतः
 

 
जघ्ने निघ्नेन विघ्नो बहुलबलबक
 
जन्माधिव्याध्युपाधि प्रतिहतिविरहप्रापकाणां
 

 
तत्त्वज्ञान्मुक्तिभाजः सुखयसि हि गुरो
तदुष्प्रेक्षानुसारात्कतिपयकुनरैः
त्रिष्वण्येवावतारेष्वरिभिरपघृणं
 

 
दृष्ट्वा दुष्टाघिपोरः स्फुटित कनक
दुधन्तीं हृदुंह मां द्रुतमनिलवलाद्
देव्यादेशप्रणीति द्रुहिणहरवसवध्य
देहादुत्क्रामितानामधिपतिः
 
निर्मृद्गन्नयत्यत्नं विजरवर
 

 

 
पीठें रत्नोपवलृप्ते रुचिररुचिमणि
प्राकृपञ्चाशत्सहस्रैर्व्यवहितममितं
प्राचीना चीर्ण पुण्योच्चयचतुरतराचारव
 
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