2023-03-20 11:53:08 by Padmanābha
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श्लोकानुक्रमणिका
ŚLOKANUKRAMANIKA
1. नखस्तुतिः
पान्त्वस्मान् पुरुहूतवैरि बलवन्मातङ्ग
लक्ष्मीकान्त समन्वतोऽपि विकलयन्
2 वायुस्तुतिः
अस्तव्यतं समस्त तिगतमधमै
अस्मिन्नमस्मद् गुरुणां हरिचरणरध्यान
अस्याविष्कर्तुकामः कलिमल कलुषे
प
आ
आक्रोशन्तो निराशा भयभरविवशाः
आनन्दान्मन्दमन्दा ददति हि मरुतः
आज्ञामन्यैरघार्या शिरसि परिसरत्
उ
उत्कण्ठाकुण्ठकोलाहलजवविदिता
उत्तप्तात्युत्कटत्विट् प्रकटकटकटध्वान
उद्यद्विद्युत् प्रचण्डां निचरुचि निकर
उद्यन्मन्दस्मित श्रीमृदुमधुमधुरालाप
....
....
...*
....
....
....
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VERSE NO.
1
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1. नखस्तुतिः
पान्त्वस्मान् पुरुहूतवैरि बलवन्मातङ्ग
लक्ष्मीकान्त समन्वतोऽपि विकलयन्
2 वायुस्तुतिः
अस्तव्यतं समस्त तिगतमधमै
अस्मिन्नमस्मद् गुरुणां हरिचरणरध्यान
अस्याविष्कर्तुकामः कलिमल कलुषे
प
आ
आक्रोशन्तो निराशा भयभरविवशाः
आनन्दान्मन्दमन्दा ददति हि मरुतः
आज्ञामन्यैरघार्या शिरसि परिसरत्
उ
उत्कण्ठाकुण्ठकोलाहलजवविदिता
उत्तप्तात्युत्कटत्विट् प्रकटकटकटध्वान
उद्यद्विद्युत् प्रचण्डां निचरुचि निकर
उद्यन्मन्दस्मित श्रीमृदुमधुमधुरालाप
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