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गोविन्द दामोदर स्तोत्र
 
( ७० )
 
हे जिह्वे ! तू 'श्रीकृष्ण ! गोविन्द ! हरे ! मुरारे ! हे नाथ !
 
नारायण ! वासुदेव ! तथा गोविन्द ! दामोदर ! माधव !' - इस
नामामृतका ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह ।
 
( ७१ )
 
अहो ! मनुष्योंकी विषयलोलुपता कैसी आश्चर्यजनक है! कोई-
कोई तो बोलनेमें समर्थ होनेपर भी भगवन्नामका उच्चारण नहीं करते;
किन्तु हे जिह्वे ! मैं तुझसे कहता हूँ, तू 'गोविन्द ! दामोदर ! माधव !'
- इस नामामृतका ही निरन्तर प्रेमपूर्वक पान करती रह ।
 
इस प्रकार यह श्रीबिल्वमङ्गलाचार्यका बनाया हुआ गोविन्द दामोदर-
स्तोत्र समाप्त हुआ ।
 
-४२००६४-८००-
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